यह कहानी है एक लाचार बाप की जो अपनी औलाद के पैरो में पगड़ी रख कर अपनी लाज (इंजत) की भीख मांगता है अपनी औलाद के आगे हार जाता है लेकिन उनकी बेटी एक नही चुनती है और वह बेटी कहती है की मेंरे यह माँ-बाप नही है बेटी इतनी प्यार में पागल हो जाती हैं कि सामने माँ -बाप होते हुए भी इंकार कर देती हुँ
बेटी मेरी लाज रख लो,पगड़ी रखु तेरे पहेरो मे,जग हसे मुह दिखाई नहीं रहुगा मे,
हजार गुना माफ करदु आज,पगड़ी की लाज रखले आज
उम्र गुजर जाती है आशियाना बनाते बनाते, फिर एक तूफानआता है और सपनों के घरौंदे उड़ा ले जाता है।जैसे तैसे करके बाप बच्चो को पालता है , अपनी औकात से बढ़कर उनकी शिक्षा के लिए दर दर भटकर पैसों का जुगाड करता है कि एक दिन मेरी संतान मेरा मस्तक इस समाज में गर्व से ऊंचा कर देगी लेकिन ये तो उसका हवाई स्वप्न था? बच्चे थोड़े पढ़कर होशियार होते ही , न जाने प्रेम के कोनसे मायाजाल में पड़ते है कि परिवार की लाज और सम्मान मानी जाने वाली " पगड़ी " को अपने ही पैरो तले कुचल देते है । ऐसा ही वाकया इस वीडियो में है। मेने जब इसे देखा , तो एकाएक मेरी आंखों से अनायास ही आंसू छलक आए ।
बेटी एक लडके से शादी करने जा रही थी।
जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर गुजर बसर करने वाला बूढ़ा बाप अपनी नादान औलाद से भीख मांगता है-
" बिटिया ! कौनसी भूल हुई हमसे की इस उम्र इतनी बड़ी सजा दे रही है ।
सिर पर सफेदी है, ताउम्र जीवडे का टुकड़ा बना कर रखा तुझे , मान जा मेरी बेटी । इस अभागे बाप पर थोड़ी दया कर ।"बाप गिड़गिड़ाहट सुनकर भी बेटी पर कुछ असर नहीं होता है।लाचार, अभागा बाप अपनी पगड़ी ही उतार कर उसके पैरों में रख देता है इससे अधिक और क्या करता पर बेशर्म और इश्क के खुमार में डूबी बेटी बाप का दर्द कहा समझने वाली थी।
अंत में पिता नम आंखे और हताश चेहरा लिए लौट आता है । लोगो के ताने और घर की मर्यादा को लेकर गहन चिंतन में डूब जाता है । रात्रि को बिना कुछ खाए अपने कमरे में खुद को बंद कर लेता है । घरवाले के लाख कहने पार भी दरवाजा नहीं खुलता, दरवाजा तोड़कर देखा तो बाप अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुका होता है।आशा है आप इस अभागे पिता का दर्द समझ सके होंगे । पिता कभी संतान का बूरा नहीं चाहता , उसको आपके भविष्य की चिंता आपसे ज्यादा होती है। नादान मूर्ख संतान ये समझ नहीं पाती । जिसके पीछे कारण है " संस्कार " !
यह समाज रूपी भूमि में बोया जाने वाला ऐसा बीज है जो आपके संतान रूपी पोधो को वृद्धि के नए नए आयाम प्रदान करता है जो बड़े पेड़ बनकर परिवार को शीतल छाया प्रदान करता है , लेकिन जब संस्कार रूपी बीज आप समय पर नहीं बोते तो भूमि में उगने वाली अनावश्यक खरपतवार आपके सारे सपने ध्वस्त कर देती है।
पूरा भारतवर्ष मेरा समाज है । मेरी विनती है आप सभी से , भविष्य में ऐसी विकट घड़ी किसी को झेलने की जरूरत ना पड़े। केवल किताबी शिक्षा ही जीवन का मौलिक आधार नहीं है, यह पारिवारिक संस्कार के बिना अधूरी है ।
जीवन के निर्माण में, सद्गुण बनें विशिष्ट।
संस्कार गर न मिलें, बालक बने अशिष्ट।।
Note:-- इस पोस्ट से आपको कुछ चीख मिलती हैं तो मुझे बहुत खुशी होगा कि मैने यह पोस्ट लिखकर किसी को सही रास्ते दिखाकर मैरा जीवन सफल हो जाएगा
इस www.marudhar1.blogspot.com बेबसाइट के सभी पोस्ट बढे ताकि अपनी सामाज की संस्कृति वह मर्यादा बनी रहे
इस पोस्ट से किसी सामाज या जाति को ठेस पहुंचाने का उद्येसिय नही है मेरा मक्सत समाज को सही रास्ता दिखाने का है
Nice post
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