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History of king rav chandrasenji radhore life

राव चंद्रसेन जी राठौड़ का इतिहास का भाग - 9" (अंतिम भाग) राव चन्द्रसेन की कुल 11 रानियाँ थीं :- 1) रानी कल्याण देवी :- चौहान बीका के पुत्र हम्मीर की पुत्री। इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम उग्रसेन था। 2) रानी कछवाही सौभाग्यदेवी :- फागी के स्वामी नरुका सबलसिंह की पुत्री। इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम रायसिंह था। 3) रानी भटियाणी सौभाग्यदेवी :- इनका पीहर का नाम कनकावती था। ये जैसलमेर के रावल हरराज की पुत्री थीं। ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं। 4) रानी सिसोदिनी जी सूरजदेवी :- ये मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री व महाराणा प्रताप की बहन थीं। इनके पीहर का नाम चंदा था। ये रानी तीर्थयात्रा के लिए मथुरा पधारीं, जहां इनका देहान्त हुआ। इन रानी का एक पुत्र हुआ, जिनका नाम आसकरण था। 5) रानी कछवाही कुमकुम देवी :- ये जोगसिंह कछवाहा की पुत्री थीं 6) रानी औंकार देवी :- ये सिरोही के देवड़ा मानसिंह की पुत्री थीं। इनका देहान्त मथुरा में हुआ। 7) रानी भटियाणी प्रेमलदेवी :- ये बीकमपुर के राव डूंगरसिंह की पुत्री थीं। 8) रानी भटियाणी सहोदरा :- ये बीकमपुर के रामसिंह की पुत्री थीं। इनका

History of Meera Bai's life मीरा बाई के जीवन का इतिहास

            मीरा बाई के जीवन का इतिहास भक्त शिरोमणि मातृश्री मीराबाई, 17वी  शताब्दी की कुछ ऐतिहासिक महत्व एवं मेड़तिया राठौड़ के कुलगुरु की बहियो के आधार पर मेरा का समय विक्रम संवत 1555 से 1604 (सन 1998 से 1504 ईसवी) तक का मालूम होता है मीराबाई मेडता  के राठौड़ शासक राव दूदा के द्वितीय पुत्र रतन सिंह की इकलौती पुत्री थी राव दूदा ने रतन सिंह को अपने राज्य में से 12 गांव निमडी  पालड़ी अकोदिया हलदर नुंद  पमनिया मोटस ढ़ुमानी सुंदरी   कुंडकी बाजोली और नैणीया जागीर में दे रखे थे   मीराबाई के जन्म के पूर्व उसके माता-पिता बाजोली में रहते थे जहां उनकी एक पुत्र  गोपाल का जन्म हुआ बचपन में उनकी मृत्यु के बाद उनके माता-पिता बाजोली  छोड़कर कुंडकी आकर बस गए और वहां एक छोटा सा गढ़   बनवा लिया History of science Panadhye maa मीराबाई का जन्म और कुर्की  गांव में रतन सिंह की रानी कसबू  कवर जी कलहल हामीरोतरा  से विक्रम संवत 1555 इसी की वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ जब मीरा करीब 3 वर्ष की थी तब उनकी माता का देहांत हो गया जिससे राव  दूदा (दादीजी) ने अपने पास बुला लिया और वहीं उनका पालन-पोषण हुआ  साव

Rav jeta-kumpaji ki history in ( Hindi) राव जेता-कुम्पाजी का इतिहास

                                                राव जेता-कुम्पाजी का इतिहास  यह इतिहासिक गाथा आज हम मारवाड के दो वीर सपूतो के बारे मे बताएगे जिसने अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरो मे लिख जाता है राव कुंपा - राव जेता (जोधपुर रियासत):- जोधपुर राज्य के इतिहास में जहाँ वीर शिरोमणि दुर्गादास स्वामिभक्ति के लिये प्रशिध है तो राव कुंपा और उसके चचेरे भाई जेता का नाम प्रसिद्ध सेनापति,वीरता, साहस, पराक्रम और देश भक्ति के लिए मारवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है | राव कुंपा जोधपुर के राजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पोत्र व मेहराज के पुत्र थे इनका जनम वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी कर्मेती भटियाणी जी के गर्भ से हुवा था | राव जेता मेहराज जी के भाई पंचायण जी का पुत्र था अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा की आयु एक साल थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए | मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुंपा व जेता जेसे वीर उसके सेनापति थे,मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को मालदेव की आज्ञा से रा