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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Panjavan devji ki veer ghatha पंजवन देवजी की वीर गाथा

 Panjavan devji ki veer ghatha पंजवन देवजी की वीर गाथा=आमेर नरेश पंजवन देव जी कच्छवाहा : एक महान धनुर्धर एवम पराक्रमी योद्धा पंजवन देव जी सम्राट पृथ्वीराज के अहम सहयोगी थे। इनका विवाह पृथ्वीराज चौहान के काका कान्ह की पुत्री पदारथ दे के साथ हुआ। यहां प्रश्न उठता है कि लोग किस आधार पर पृथ्वीराज को गुर्जर बता रहे है जबकि इनके वैवाहिक संबंध आमेर के कच्छवाहा राजपूतों के साथ रहा पजवन देव जी ने स्वयं के नेतृत्व में कुल 64 युद्ध जीते थे । प्रारंभिक रूप से भोले राव पर विजय प्राप्त की , (राजा भीम सोलंकी गुजरात का राजा था इसे भोला भीम कहा जाता था) ।पृथ्वीराज चौहान ने इन्हें बाद में नागौर भेजा। पृथ्वीराज और गोरी के बीच लड़े गए अधिकतर युद्धों में नेतृत्व इन्होंने ही किया। जब गोरी से प्रथम बार सामना हुए तब मुस्लिम सेना की संख्या 3 लाख के करीब थी। परंतु पजवन जी के पास केवल 5000 सैनिकों की फौज थी। इसलिए पंजवन जी के लोगो ने अरज किया कि- "अपने पास सेना बहुत कम है और गौरी के पास बहुत अधिक है इसलिए युद्ध मत करो, वापिस चलो।" तब पंजवन जी कछवाहा ने कहा कि- " पृथ्वीराज को जाकर क्या कहेंगे। फिर

पाति परवन परम्परा, क्या है जाने Pati pervan parmpara

 पाति परवन परम्परा "क्या है जाने Pati parvan parmpara  पाति परवन परम्परा , pati parvan prarmpara अर्थात अधर्मी व विदेशी बर्बर आक्रांताओं को हिंदू साम्राज्य की सीमाओं से खदेड़ने हेतु सनातनी राजाओं का एक संगठन के रूप में सहयोग करना जिसमे शपत ली जाती थी कि -  " जब तक इस देह में प्राण है तब तक इस वीर भूमि भारतवर्ष पर अधर्मीयों का अधिपत्य नहीं होने देंगे। "  पाति परवन परम्परा राजपुत कालीन एक प्राचीन परम्परा जिसे राजपूताना में पुनजीर्वित करने का श्रेय राणा सांगा जी  ( संग्राम सिंह प्रथम - मेवाड़ ) को दिया जाता है। राजपूताने के वे पहले शासक थे  जिन्होंने अनेक राज्यों के राजपूत राजाओं को विदेशी जाति विरूद्ध संगठित कर उन्हें एक छत्र के नीचे लाये ।  बयाना का युद्ध ( जिसमे बाबर बुरी तरह पराजित हुआ ) एवम् खानवा का युद्ध पाति परवन परम्परा के तहत ही लड़ा गया।  बयाना युद्ध में विजय पश्चात सभी राजाओं द्वारा महाराणा सांगा को " हिंदूपत ( हिंदूपात ) की पदवी से विभूषित किया गया। जिसका तात्पर्य हिंदू सम्राज्य के राजाओं का महाराजा है। खान्डा परम्परा क्या है जाने

ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत 1 thakur Dungarsinghji, thakur jawaharsinghji shekhawat

ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत भाग 1(thakur Dungarsinghji, thakur jawaharsinghji shekhawat ) यह भाग पहला हैं इस पेज का दूसरा भाग का लिंक नीचे दिया गया है  भारतीय स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत राजस्थानी योद्धाओं में शेखावाटी के सीकर संस्थान के बठोठ पाटोदा के ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत का स्थान प्रमुख है। बठोठ पाटोदा के डूंगरसिंह जवाहरसिंह का विद्रोहात्मक संघर्ष बड़ा संगठित, सशक्त और अग्रेज सत्ता को आतंकित कर देने वाला था। ठाकुर जवाहरसिंह और ठाकुर डूंगरसिंह के साथ शेखावाटी के खीरोड़, मोहनवाड़ी, मझाऊ, खड़ब तथा देवता ग्रामों के सल्हदीसिंहोत, ठाकुर सम्पतसिंह के नेतृत्व में आ मिले थे।  यह अंग्रेज विरोधी संघर्ष केवल ठाकुर जागीरदारों तक ही सीमित नहीं था अपितु जाट, मीणें, गूजर, लुहार, नाई आदि जातियों के जागृत लोगों के सक्रिय सहयोग से आरम्भ हुआ था। राजपूत के बारे में जाने सांवता मीणा, लोटिया जाट, बालिया नाई, करणिया मीणा आदि के उल्लेख से यह तथ्य स्पष्ट ही सत्य प्रकट होता है।  इस संगठित अभियान को संचालित करने में ठाकुर जवाहरसिह प्रमुख थे। ठाकुर जवाहरसिंह और डूंगरसिह चचे

ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत thakur Dungarsinghji, thakur jawaharsinghji shekhawat episode 2

 ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत भाग=2 राजपुत  संबत् 1895 वि. ठाकुर जवाहरसिंह, डूंगरसिंह, ठाकुर खुमानसिह बीदावत लोढ़सर, हरिसिंह बीदावत, अन्नजी बीदाबत भोजोलाई तथा कर्णसिह बीदावत रूतेली आदि ने बीकानेर के लक्ष्मीसर आदि अनेक ग्रामों को लूट लिया और बाीकानेर से जोधपुर, किशनगढ़ होते हुए अजमेर मेरवाड़ा की ओर चले गए। ठाकुर डूंगरसिह अपने ससुराल भड़वासा (अजमेर से दक्षिण में 10 मील दूर) स्थान पर विश्रांति के लिए जा ठहरा। उपयुक्त घटनाओं से अंग्रेज सत्ता और भी आतंकित होकर उत्तेजित हो गयी और इन स्वातंत्रय संग्राम के सक्रिय योद्धाओं को पकड़ने, मारने और विश्रंखलित करने के लिए सभी उपाय करने लगी। भड़वासे का भैरवसिह गौड़ डूंगरसिंह का सम्बन्धी और विक्षुब्ध व्यक्ति था। अंग्रेजों ने उसे भय, आतंक और लोभ दिखाकर डूंगरसिंह को पकड़वाने के लिए सहमत कर लिया। भैरवसिंह गौड़ ने डूंगरसिंह के साथ कृत्रिम प्रात्मीयता प्रकट कर उसे दावत दी और छल पूर्वक मद्यपान से छकाकर अर्द्ध संज्ञाहीन कर दिया और उधर गुप्त रूप से अजमेर नसीराबाद में सूचना भेज दी। अजमेर और नसीराबाद की छावनी स्थित अंग्रेज सेना ने युद्ध सज्जा में सुसज्जि

महाराणा प्रताप का गौरव , व चेतक का बलिदान (maharana pratap ka gaurav, aur chetak ka balidan)

 महाराणा प्रताप का गौरव , व चेतक का बलिदान  (maharana pratap ka gaurav, aur chetak ka balidan) मारवाड़ी घोड़ों को उनके विविध प्रकार के रंगों और रूपों के लिए भी जाना जाता है। जैसा कि मेवाड़ क्षेत्र में गाए जाने वाले विभिन्न लोकगीतों में वर्णित है, ऐसा प्रतीत होता है कि चेतक के कोट में नीले रंग का विशिष्ट स्वर था। हम महाराणा प्रताप सिंह को 'ब्लू हॉर्स के राइडर' के रूप में वर्णित करने वाली गाथागीत की पंक्तियों को याद कर सकते हैं। चेतक एक आकर्षक घुमावदार और मुड़े हुए कान थे। जब कानों को आगे की ओर झुकाया गया, तो कानों के शीर्ष एक साथ मिलकर एक सुंदर रूप पेश करते थे। चेतक के पास एक मोर की गर्दन और चौड़ी छाती थी।   चेतक आक्रामक, अभिमानी और नियंत्रण करने में मुश्किल था। इसे केवल प्रताप द्वारा नियंत्रित किया जा सकता था, जिस पर उसने निष्ठा और विनम्रता का उच्चतम स्तर दिखाया। प्रताप और चेतक की प्रशंसा में गाए गए अधिकांश गाथागीत उनके व्यक्तित्वों को समान रूप से वर्णित करते हैं क्योंकि उन्होंने उनके साथ कई गुणों को साझा किया था।   हल्दीघाटी युद्ध में हुई घटना से चेतक की वीरता और निष्ठा को सबस

Rajput(राजपूत)

  Rajput राजपूत: - अभियान की वेशभूषा में महाराजा रणबीर सिंह जम्वाल के डोगरा सैनिक, 1876 ई जम्मू और कश्मीर राज्य बल फोटोग्राफर: बॉर्न और शेफर्ड (विक्टोरिया मेमोरियल हॉल, कोलकाता) डोगरा राजपूत: डोगरा भारत में पाई जाने वाली सबसे अच्छी लड़ाई सामग्री में से एक है। उनके पास मैदानों के अपने हमवतन की तुलना में राष्ट्रीय गौरव की एक गहरी भावना और राष्ट्रीय अखंडता की उच्च भावना है। डोगरा राजपूत चरित्र की काफी ताकत के साथ आरक्षित पुरुष हैं। उनके पास सम्मान का एक उच्च विचार है, बहुत स्वाभिमानी है और एक पूंजी सैनिक बनाता है। उन्हें लंबे समय से बहादुर और वफादार सैनिकों के रूप में जाना जाता है और उनके नमक के प्रति वफादारी उनके नासिका की सांस के रूप में है। शानदार से अधिक ठोस, वे पूर्ण साहस से भरे होते हैं जब खतरे का सामना करते हैं। अच्छी तरह से व्यवहार किया गया, स्थिर और दृढ़, हालांकि साहस का प्रदर्शन नहीं, उनके गुण संकट के क्षणों में चमकते हैं जब वे मरने से पहले एक शांत और दृढ़ संकल्प के साथ निश्चित मृत्यु का सामना करेंगे। बोराज का युध्द  1843 <<=अधिक जानेे