ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत thakur Dungarsinghji, thakur jawaharsinghji shekhawat episode 2
ठाकुर डूंगरसिंह जी, ठाकुर जवाहरसिंह जी शेखावत भाग=2
राजपुत संबत् 1895 वि. ठाकुर जवाहरसिंह, डूंगरसिंह, ठाकुर खुमानसिह बीदावत लोढ़सर, हरिसिंह बीदावत, अन्नजी बीदाबत भोजोलाई तथा कर्णसिह बीदावत रूतेली आदि ने बीकानेर के लक्ष्मीसर आदि अनेक ग्रामों को लूट लिया और बाीकानेर से जोधपुर, किशनगढ़ होते हुए अजमेर मेरवाड़ा की ओर चले गए। ठाकुर डूंगरसिह अपने ससुराल भड़वासा
(अजमेर से दक्षिण में 10 मील दूर) स्थान पर विश्रांति के लिए जा ठहरा। उपयुक्त घटनाओं से अंग्रेज सत्ता और भी आतंकित होकर उत्तेजित हो गयी और इन स्वातंत्रय संग्राम के सक्रिय योद्धाओं को पकड़ने, मारने और विश्रंखलित करने के लिए सभी उपाय करने लगी। भड़वासे का भैरवसिह गौड़ डूंगरसिंह का सम्बन्धी और विक्षुब्ध व्यक्ति था। अंग्रेजों ने उसे भय, आतंक और लोभ दिखाकर डूंगरसिंह को पकड़वाने के लिए सहमत कर लिया। भैरवसिंह गौड़ ने डूंगरसिंह के साथ कृत्रिम प्रात्मीयता प्रकट कर उसे दावत दी और छल पूर्वक मद्यपान से छकाकर अर्द्ध संज्ञाहीन कर दिया और उधर गुप्त रूप से अजमेर नसीराबाद में सूचना भेज दी। अजमेर और नसीराबाद की छावनी स्थित अंग्रेज सेना ने युद्ध सज्जा में सुसज्जि होकर भड़वासा में विश्राम करते उस स्वातंत्रय समर के पंक्तिय योद्धा को यकायक जा घेरा। गौड़ों ने उसके शस्त्र पहिले ही अपने अधिकार में कर लिए थे। ऐसी अर्द्धचेतन-अवस्था में उस नर शार्दूल डूंगरसिह को अंग्रेजों ने बन्दी बनाकर सुरक्षा की दृष्टि से राजपूताना से दूर अगरा के लालकिले की कारागार में ले जाकर बन्द कर दिया। इस छलाघात से जहां गौड़ों की पुष्कल निन्दा हुई वहां शेखावतों और डूंगरसिह के सहयोगियों में अपार रोष भड़क उठा। वे लोग प्रतिशोध के लिए उद्यत होकर आगरा दुर्ग पर आक्रमण कर डूंगरसिह को कारावास से मुक्त करवाने के लिए कटिबद्ध हो गए।
ठाकुर जवाहरसिंह ने आगरा दुर्ग पर आक्रमण कर डूंगरसिंह और उन्हीं की तरह पकड़े गए अन्य कतिपय ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी स्वतन्त्रता सेनानियों को उन्मुक्त करने की योजना बनाई। इस योजना की सफलता के लिये अपने ग्राम बठोठ के नीठारवाल गोत्र के जाट, लोटिया और मीणा जाति के योद्धा सांवता को आगरे भेजा तथा वहां की अन्तःबाह्य स्थिति की जानकारी मंगवाई और समस्त सूचनाएं प्राप्त कर विक्रमी संवत् 1903 में ठाकुर जवाहरसिंह ने ठाकुर भोपाल सिंह, ठाकुर बख्तावरसिंह श्यामसिंहोत श्यामगढ़ (शेखावाटी), ठाकुर खुमान सिंह बीदावत लोढ़सर, अलसीसर, कानसिंह, उजीणसिंह मींगणा, जोरसिंह खारिया-बैरीशालसिंह, हरिसिंह प्रभृति बीदावत योद्धा तथा हठीसिह कांधलोत, मानसिंह लाडखानी, सिंहरावट के .....खान्डा विवाह क्या है जाने
हुकमसिंह, चिमनसिंह, लोटिया जाट, सांवता, करणिया मीणा, बालू नाई और बरड़वा के लाडखानी शेखावतों आदि कोई चार सौ पांच सौ वीरों ने बारात का बहाना बना कर आगरा की ओर प्रस्थान किया और उपयुक्त अवसर की टोह में दूल्हा के मामा के निधन का कारण बना कर पन्द्रह दिन तक आगरा में रुके रहे। तदन्तर मुहर्रम के ताजियों के दिन यकायक निश्रयणी (सीढ़ी) लगा कर दुर्ग में कूद पड़े। किले के रक्षकों, प्रहरियों और अवरोधकों को मार काट कर डूंगरसिंह सहित समस्त बंदियों को मुक्त कर निकाल दिया। इस महान् साहसिक कार्य से अंग्रेज सत्ता स्तब्ध रह गई। अंग्रेजों की राजनैतिक पैठ उठ गई। आजादी के बलिदानी योद्धाओं के देश भर में गुण गीत गूजने लगे। आगरा के कथित युद्ध में ठाकुर बख्तावरसिंह शेखावत श्यामगढ़, ठाकुर उजीणसिह मींगणा (बीकानेर) हणू तदान मेहडू चारण ग्राम दांह (सुजानगढ़ तहसील) आदि लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
ठाकुर जवाहरसिंह के प्रयत्न से उन्मुक्त भारतीय आजादी के दिवाने डूंगरसिह वगैरह ने आगरा से प्रस्थान कर भरतपुर तथा अलवर राज्य के गिरि भागों को त्वरिता से पार करते हुए भिवानी समीपस्थ बड़बड़ भुवाणां ग्राम के विकट अरण्य में विश्राम लिया। तदुपरांत बठोठ पाटोदा में पहुंच कर राजस्थान के अंग्रेजों के पांव उखाड़ने की योजना तैयार करने लगे। अन्त में आगरा दुर्ग से मुक्त होने के कुछ ही समय पश्चात् सीकर राज्य के सेठों के रामगढ़ के धनाढ्य सेठ अनंतराम घुसमिल पोद्दार गौत्र के अग्रवाल वैश्यों से पन्द्रह हजार की नकद राशि प्राप्त कर ऊंट, घोड़े और अस्त्र-शस्त्रों की खरीद कर राजस्थान के मध्य में अजमेर के निकटस्थ सैनिक छावनी नसीराबाद पर आक्रमण किया। शेखावाटी, बीकानेर और मारवाड़ के अंग्रेज विरोधी वीरों को सुनिश्चित स्थान, समय तथा कार्यक्रम की सूचना देकर ठाकुर जवाहूरसिंह व ठाकुर डूंगरसिंह ने बठोठ पाटोदा से प्रस्थान किया। अंग्रेजों के आदेश पर बीकानेर नरेश रतनसिंह ने शाह केशरीमल को डूंगरसिंह को पकड़ने के लिए सेना देकर भेजा। बीकानेर के पूंगल तथा बरसलपुर के पास दोनों पक्षों में मुठभेड़ हुई उसमें नव विद्रोही पकड़े गये और शेष लड़ते हुए सेना को चीर कर निकल गये।
नसीराबाद के आक्रमण में स्वातंत्रय सेनानियों ने तीन समूहों में विभिन्न दिशाओं से कूच किया था। एक दल शेखावाटी की ओर से प्रस्थान कर जयपुर राज्य के मालपुरा खण्ड से होते हुए रात्रि को डिग्गी ठिकाने के ग्राम में ठहरा और वहां से प्रयाण कर किशनगढ़ राज्य के करकेड़ी, रामसर होता हुआ नसीराबाद पहुंचा। डिग्गी ठिकाने के ग्राम में रात्रि विश्राम करने के कारण अंग्रेजों ने डिग्गी के ठाकुर ......जाने बोराज युध्द 1843
मेघसिंह के दो ग्राम जप्त कर लिए थे।
दूसरा मारवाड़ की ओर का दल अजमेर नांद, रामपुरा, पिसांगन होता हुआ मसूदा के पास से गुजरा और तृतीय दल मेवाड़ के बनेड़ा के वनों से निकल कर नसीराबाद आया। तीनों दल जिनके पास एक सौ ऊंट और चार सौ घोड़े थे-ने मिल कर अर्द्धनिशा में जनरल ब्योरसा द्वारा सुरक्षित छावनी पर धावा मारा और छावनी के प्रहरियों में से छह को मार तथा सात को गिरफ्तार कर बक्षीखाने के कोष से कोई 27 हजार रुपए लूट लिए। सेना के तम्बू जल दिए। यह राशि सैनिकों को वेतन चुकाने के लिए एक दिन पूर्व नसीराबाद छावनी के कोष में जमा हुई थी। यों लूट-मार कर जांगड़ी दोहों के सस्वर बोल-सुनते हुए शाहपुरा राज्य के प्रसिद्ध माताजी के मन्दिर धनोप में देवी को द्रव्य भेंट कर मेवाड़, मारवाड़, सांभर तथा नांवां की ओर यत्र तत्र निकल गये। नसीराबाद के आक्रमण में स्वतन्त्रता सेनानियों में दूजोद का कालूसिंह चांदसिंहोत भी शामिल था।
नसीराबाद की इस प्रथित छावनी तथा राजकीय कोष की परिहृती से अंग्रेजों का राजस्थान से प्रभाव विलीन होकर चारों ओर अपार परिवाद फैल गया। स्वतंत्रता भिलाषी जनमानस में असीम गौरव का संचार हो गया। कवियों, याचकों और विरुद्ध वाचकों के कण्ठों पर जवाहरसिंह डूंगरसिंह के नाम नृत्य करने लगे। तब कर्नल जे. सदरलैंड ने राजस्थान के राजाओं को डूंगरसिंह जवाहरसिंह को पकड़ने के लिए सशक्त आदेश भेजे और कैप्टिन डिक्सन, मेजर फास्तर, कप्तान शां और बीकानेर के सेनानायक ठाकुर हरनाथसिंह नारणोत मधरासर के नेतृत्व में सेनायें भेजी गई। जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने मेहता विजयसिंह, कुशलराज सिंघवी तथा किलादार औनाड़सिंह के नेतृत्व में राजकीय सेना भेजी और जोधपुर के जागीरदारों को अपनी जमीयत के साथ इनकी सहायतार्थ सम्मिलित होने का आदेश भेजा। फलतः ठाकुर इन्द्रभानु जोधा भाद्राजून, ठाकुर केशरीसिंह मेड़तिया जावला, ठाकुर बहादुरसिंह लाडनंू, ठाकुर विजयसिंह लूणवा और ठाकुर शार्दूलसिंह पिपलाद आदि रियासती सेना में शामिल हुए। ब्रिटिश सेना के ई. एच. मेकमेसन तथा कप्तान हार्डकसल भी डीडवाना पहुंच कर सदल-बल उससे जा मिले। घड़सीसर ग्राम में उभय पक्षों में सामुख्य हुआ। दोनों ओर जम कर लड़ने के बाद स्वतन्त्रताकांक्षी विद्रोही योद्धा शासकीय सेना के घेरे में फंस गये। ठाकुर हरनाथसिह कैप्टिन शां के विश्वास, आग्रह और नम्रता के व्यवहार से आश्वस्त होकर ठाकुर जवाहरसिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। ठाकुर जवाहरसिंह को तदनंतर बीकानेर ले जाया गया जहां महाराजा रतनसिंह ने ससम्मान अपने वहां रखा और अंग्रेजों को प्रयत्न पूर्वक मांगने पर भी उन्हें नहीं सौंपा।....
ठाकुर डूंगरसिंह घड़सीसर के सैनिक घेरे से निकल कर जैसलमेर राज्य की ओर चला गया। जैसलमेर के गिरदड़े ग्राम के पास मेड़ी में हुकमसिंह और मुकुन्दसिंह भी उससे जा मिले। राजकीय सेना ने फिर उन्हें जा घेरा। दिन भर की लड़ाई के बाद ठाकुर प्रेमसिह लेड़ी तथा नींबी के ठाकुर आदि के प्रयत्न से मरण का संकल्प त्याग कर आत्म समर्पण कर दिया। हुकमसिंह और चिमनसिह को जैसलमेर के भज्जु स्थान पर शस्त्र त्यागने के लिए सहमत किया गया।
इस प्रकार राजस्थान में भारतीय स्वतन्त्रता के संघबद्ध सशस्त्र प्रयत्न का प्रथम दौर संवत् 1904 वि. में समाप्त हुआ।
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