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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

gaitor kee chhatariyaan - गैटोर की छतरियां

 गैटोर की छतरियां  gaitor kee chhatariyaan - गैटोर की छतरियां अपनी राजपूत शिल्पकला की सुन्दरता का उदाहरण आमेर ( जयपुर ) के कच्छवाहा राजाओं की ये गैटोर की छतरियां संगमरमर और बलुआ पत्थर पर उत्कीर्ण पारम्परिक कला-प्रतीकों और परिश्रम से खोदे गये मनमोहक दृश्य-चित्रों की कमनीयता के लिहाज से बेजोड़ स्मारक हैं। Pabuji radhore ka itihas यह छतरियां पंचायन शैली में निर्मित है जो नाहरगढ़ किले की तलहटी में स्थित है। यह जयपुर का ऐतिहासिक कच्छवाहा शासकों का शाही श्मसान स्थल है जहां इनकी छतरियां है । यह छतरियां सवाई जय सिंह से प्रारंभ होती है जो सवाई मान सिंह जी द्वितीय तक की है । लेकिन यहा सवाई इश्वरी सिंह जी की छतरी नहीं है जिनकी छतरी सिटी पैलेस ( चन्द्र महल) परिसर में है।  ये राजस्थान की प्राचीन वास्तुकला के सुन्दर उदाहरण हैं। सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के 'केनसिंगल म्यूजियम' में भी रखी गई है। गैतोरे की छत्रियां कछवाहा के लिए एक शाही श्मशान भूमि है, जो एक राजपूत वंश था जिसने इस क्षेत्र में शासन किया था। साइट को 18 वीं शताब्दी मे

History of Raja Jai ​​Singh- राजा जय सिंह प्रथम का इतिहास

राजा जय सिंह प्रथम ( कच्छवाहा )   ढूंढाड़ ( आमेर - जयपुर ) थे। जय सिंह जी प्रथम raja Jai Singh 1621 से 1667 के मध्य आमेर के शासक थे  History of Raja Jai Singh- राजा जय सिंह प्रथम का इतिहास |   Raja jai Singh राजा मान सिंह जी के पोत्र एवं माहस सिंह जी के इकलौते पुत्र थे । ये आमेर के 16 वें शासक थे। ये भी पढ़ें >> रुणिचा का इतिहास  इनका जन्म 15 जुलाई 1611 में हुआ । मान सिंह जी के पुत्र भाव सिंह जी की बंगाल अभियान के दौरान आकस्मिक मृत्यु के बाद जय सिंह प्रथम आमेर की गद्दी पर विराजमान हुए।  ये कुशल रणनीतिज्ञ एवम् हिंदू धर्म रक्षक थे । इनके काल में मुगल शासक भी हिंदू धार्मिक गतिविधिओं व पाठ पूजाओं में हस्तक्षेप नहीं करते थे । इनके शासन के दौरान प्रबल हिंदू विरोधी मुगल शासक औरंगजेब भी मंदिर तोड़ने की हिमाकत नहीं कर सका । जय सिंह प्रथम के समय आमेर के जोधपुर रियासत के साथ मित्रता के प्रगाढ़ संबंध रहे। पहले जोधपुर महाराजा गज सिंह एवम् उनके पुत्र जसवंत सिंह प्रथम के साथ भी काफी मित्रता रही । ( जैसा कि ऊपर के चित्र में प्रदर्शित है - जयसिंह प्रथम और जोधपुर महाराजा गज सिंह प्रथम सा साथ बैठ

Pabuji Rathore (पाबुजी राठौड़)

History of Pabuji Rathore Pabuji Rathore ( पाबूजी राठौड़ )उस वीर ने फेरे लेते हुए ही सुना कि देवल बाई की गाय जिंदराव लेकर जा रहा है यह सुनते ही pabuji वह से आधे फेरों के बीच ही उठ खड़ा हुआ और तथा गाय की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुआ  पाबूजी राठौड़ का जन्म वि.स. 1313 को जोधपुर के निकट कोलू मढ़ में हुआ था, पिता का नाम धाँधलजी राठौड़ था ।जब पाबूजी युवा हुए तो अमरकोट के सोढा राणा के यहाँ से सगाई का नारियल आया. सगाई तय हो गई. पाबूजी ने देवल नामक चारण देवी को बहन बना रखा था. देवल के पास एक बहुत सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न घोड़ी थी. जिसका नाम था केसर कालवी .देवल अपनी गायों की रखवाली इस घोड़ी से करती थी इस घोड़ी पर जायल के जिंदराव खिचीं की आँख थी. वह इसे प्राप्त करना चाहता था. जींदराव और पाबूजी में किसी बात को लेकर मनमुटाव भी था. विवाह के अवसर पर पाबूजी ने देवल देवी से यह घोड़ी मांगी. देवल ने जिंदराव की बात बताई. तब पाबू ने कहा कि आवश्यकता पड़ी तो वह अपना कार्य छोड़कर बिच में ही आ जायेगे. देवल ने घोड़ी दे दी.बारात अमरकोट पहुची. जिंदराव ने मौका देखा और देवल देवी की गायें चुराकर ले भागा. पाबूजी जब

History : Meharangarh fort-history in English

History : Meharangarh Fort, in English Mehrangarh the Fort of Jodhpur crowns a rocky hill that rises 400 feet above the surrounding plain, and appears both to command and to meld with the landscape. One of the largest forts in Rajasthan, it contains some of the finest palaces and preserves in its museum many priceless relics of Indian courtly life. For over five centuries Mehrangarh has been the headquarters of the senior branch of Rajput clan known as the Rathores. According to their bards, the ruling dynasty of this clan had at an earlier period controlled Kanauj (in what is known as Uttar Pradesh). Like other prominent medieval Rajput rulers – including the famous Prithviraj Chauhan – they were defeated by the invaders from Afghanistan at the end of the 12th century. This catastrophe led to the disruption and migration of the early Rajput clans that they led. The Rathores came to Pali, in Marwar, in what is now central Rajasthan. It is claimed that they were to settle there to prote

भानगढ़ एक परिचय Bhangarh An Introduction

  भानगढ़ – एक परिचय ( Bhangarh – An Introduction) : भानगढ़ ( bhangardh ) का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। यह आमेर के कच्छवाहा राजवंश के शासक माधो सिंह प्रथम का रिहाइश दुर्ग था, जिसका निर्माण 16 शताब्दी में हुआ।  किले से कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान है।  भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। सामरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है। सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है।  सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके पश्चात राज महल स्थित है। इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं।  इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बग

World-Rabari caste has the most beautiful culture

 विश्व-रबारी जाति में सबसे सुंदर संस्कृति हैं  World-Rabari caste has the most beautiful culture विश्व स्तर में सुंदर वेशभूषा और संस्कृति में रबारी समाज दूसरे स्थान पर चुना गया यह समाज और देश के लिए बड़े गर्व की बात है वही संपूर्ण भारतवर्ष में नंबर एक पर चुना गया   अपनी   वेशभूषा केवल इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में  दूसरा  स्थान प्राप्त किया है इसलिए मैं उन सभी महानुभव से निवेदन करूंगा कि जो आपने बुजुर्ग लोगों ने अपनी वेशभूषा को पहचान दी है हम सबके लिए बहुत ही गर्व की बात है हमारी संस्कृति इंडिया में नहीं विदेशों में सिंगापुर इंडोनेशिया के अंदर की गुजी हैं बड़े स्टेट पर जाकर भी लोगों ने सामान दिया है Most beautiful culture in the world  2nd number of rabari ( dewasi samaj)  पूरी दुनिया की संस्कृति में रबारी समाज  को  दूसरा_स्थान और भारत में एक नंबर स्थान मिलने पर बधाई हमारी संस्कृति म्हारो अभिमान मेरी वेशभूषा ही मेरी पहचान म्हारो समाज म्हारी ताकत यह पोस्ट पढ़ें >>  मेवाड़ रियासत वह इतिहास यह पोस्ट पढ़ें >> रेबारी समाज कि जनसंख्या बहुत-बहुत बधाई हो रबारी समाज की

रूणिचा का इतिहास-history of runicha

रूणिचा का इतिहास history of runicha .राजस्थान के  रूणिचा का इतिहास ख्याति प्राप्त पंच पीरों में श्री रामदेवजी प्रथम स्थान रखते है। ( पीर - हिंदू धर्म के वे सिद्ध पुरुष जिन्हे मुस्लिम समुदाय में भी आराध्य के रूप में स्मरण करते है। राजस्थान के लोक - देवताओं में रामदेवजी का स्थान सर्वोपरि है । ये तंवर वंशीय राजपूत थे। इनके पिता का नाम अजमल/ अजमाल जी तंवर एवम् माता का नाम मैणादे था। मारवाड़ रा परगना री विगत, रामसा पीर री ख्यात तथा तंवर री ख्यात में मल्लीनाथ जी और रामदेवजी के आपस में मिलने , मल्लीनाथ जी द्वारा पोकरण का इलाका रामदेव जी को देने तथा यहां रामदेव जी द्वारा भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का दमन करने आदि का विस्तृत विवरण मिलता है जिससे पता चलता है कि रामदेव जी मल्लिनाथ जी के समकालीन थे। वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान  रामदेव जी के पराक्रम और उनकी प्रतिष्ठा की ख्याति सुनकर अमरकोट के दलजी सोढा ने अपनी पुत्री नेतल दे का संबंध रामदेव जी के साथ कर दिया। उनका विवाह माघ शुक्ला एकादशी मंगलवार को हुआ। रामदेव जी ने अपनी भतीजी के विवाह में जगमाल मालावत के पुत्र हमीर को पोकरण दायजे में देने

वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान - veer durgadas radhore ka baleedan

वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान  अपनी जन्मभूमि मारवाड़ को मुगलों के आधिपत्य से मुक्त कराने वाले वीर शिरोमणि वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान  अपनी वीरता और कूटनीति से उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब की नींद उड़ा दी थी। veer durgadas radhore ka baleedan| एक दोहा है कि :----- बेग़म पूछै बादशा, इसड़ा केम उदास। खाग प्रहारां खूंदली, दिल्ली दुर्गादास।। भानगढ़ किला का इतिहास दिल्ली की बेगम बादशाह से पूछती है कि आज ऐसे उदास क्यों हो! बादशाह कहता है कि मेरी उदासी का कारण दुर्गादास है, जिसने अपनी तलवार के प्रहारों से दिल्ली को रौंद डाला। मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह के निधन के बाद जन्मे उनके पुत्र अजीत सिंह को दुर्गादास ने न केवल औरंगजेब के चंगुल से बचाया बल्कि उन्हें वयस्क होने पर शासन की बागडोर सौंपने में भी मदद की । उनके पिता आसकरण जोधपुर राज्य के दीवान थे। पारिवारिक कारणों से आसकरण लूणवा गांव में रहे जहां दुर्गादास का लालन - पालन उनकी माता ने ही किया। माता ने दुर्गादास में साथ देश पर मर मिटने के संस्कार डाले महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने जोधपुर रियासत पर कब्जा कर वहां शाही हाकिम ब

गोगा जी चौहान का महमूद गजनवी से युद्ध-gogajee chauhaan ka mahamood gajanavee se yuddh

 गोगा जी चौहान का महमूद गजनवी से युद्ध - भााग 2 गोगाजी gogaji चौहान का महमूद गजनवी से युद्ध- gogajee chauhaan ka mahamood gajanavee se yuddh महमूद गजनवी के उत्तर भारत पर हुये आक्रमणों के परिणाम स्वरूप गोगा जी gogaji ने अपनी सीमा से लगते हुये अन्य अव्यवस्थित राज्यों पर भी सीधा अधिकार न कर मैत्री संधि स्थापित की।  जिसके कारण उत्तरी-पूर्वी शासकों की नजरों मे गोगा चौहान भारतीय संस्कृति के रक्षक बन गए । कन्नौज विजय के बाद सन 1018 में जब महमूद सोमनाथ पर आक्रमण के लिए निकला, तब जाते समय किसी भी राजा ने उसे नहीं रोका   गोगादेवजी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा  महमूद गजनवी ने छल-बल से गोगा बापा को वश में करने के लिए सिपहसालार मसूद को तिलक हज्जाम के साथ भटनेर भेजा। दूत मसूद और तिलक हज्जाम ने गोगा बापा को प्रणाम कर हीरों से भरा थाल रख कर सिर झुका कर अर्ज किया-  ‘‘ सुल्तान आपकी वीरता और बहादुरी के कायल हैं, इसलिए आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर आप से मदद मांग रहे हैं। उनकी दोस्ती का यह नजराना कबूल कर आप उन्हें सही सलामत गुजरात के मंदिर तक जाने का रास्ता दे।" साफा और मारवाड़ के राठ

गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा(goga dev jee ke janm ka itihaas aur vansh parampara)

 गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा  गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा 10 वीं शताब्दी के लगभग अंत में मरुप्रदेश के चौहानों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रारम्भ कर दिये थे। इसी स्थापनाकाल मे घंघरान चौहान ने वर्तमान चुरू शहर से 10 किमी पूर्व मे घांघू गाँव बसा कर अपनी राजधानी स्थापित की।  राणा घंघ की पहली रानी से पुत्र हर्ष तथा एक पुत्री जीण का जन्म हुआ। लोककथाओं के अनुसार राणा घंघ की पहली रानी एक परी थीं जो हर्षदेव व जीण को जन्म देकर अपने लोक वापस चली गईं बाद में हर्षदेव व जीण बाई दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव के रूप में जन-जन के पूज्य हैं। गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा कि नींब राणा घंघरान की दूसरी रानी से कन्हराज, चंदराज व इंदराज हुये। कन्हराज के चार पुत्र अमराज, अजराज, सिधराज व बछराज हुये। कन्हराज का पुत्र अमराज (अमरा) उसका उत्तराधिकारी बना। अमराजका पुत्र जेवर(झेवर) उसका उत्तराधिकारी बना। लेकिन उदार व पराक्रमी जेवर ने घांघू का राजपाट अपने भाइयों के लिए छोड़ दिया और सुदूरवर्ती बीहड़ क्षेत्र दादरेवा को राजधानी ब

साफा और मारवाड़ के राठौड़ (Saafa aur marwad ke Rathore)

 साफा और मारवाड़ के राठौड़ ● साफा और मारवाड़ के राठौड़,राव सीहा के पुत्र राव आस्थान ने गोहिलों व डाभियों को हराकर खेड़ जीत लिया और कालान्तर में जब उसके प्रपौत्र राव कनपाल(१३१३-१३२३ई.) के समय महेवे का सारा भू-भाग राठौड़ों के अधिकार में आ गया। तब से राठौड़ों की सीमा जैसलमेर को छूने लगी। जिससे भाटियों-राठौड़ों के बीच समय-समय पर झगड़े होने लगे। तब कनपाल के ज्येष्ठ पुत्र भीम ने भाटियों को हराकर काक नदी से पश्चिम की ओर धकेल दिया। तब से दोनों की सरहद नियत हो गई। जिसका ये सोरठा प्रसिद्ध है- आधी धरती भीम, आधी लोदरवै धणी। काक नदी छै सीम, राठौड़ां ने भाटियाँ।। ( आधी धरती भीम की और आधी धरती लौद्रवै के शासकों(भाटियों) की है, काक नदी भाटियों व राठौडों के राज्य की सीमा रेखा है ) चूँकि ये सीमा महेवे के शासकों ने बलपूर्वक तय की थी, अत: भाटियों ने इसे नहीं माना और वे राठौड़ों के विरूद्ध मुल्तान के मुसलमानों व अमरकोट के सोढों को ले आए।  ई.1323 में इनके मध्य हुए युद्धों मे पहले भीम व बाद में राव कनपाल दोनों ही लड़कर काम आए और कनपाल का दूसरा पुत्र जालणसीं (१३२३-१३२७) अब महेवे का नया शासक बना। अमरकोट के स

क्षत्रियत्व (Kshtriyatva)

Kshtriyatva क्षत्रियत्व  क्षत्रियत्व! सृष्टि में मानव सभ्यता के उदय–विकास के साथ कर्म के आधार पर क्षत्रिय पुरुष का एक योद्धा के रूप में अवतरण हुआ। राष्ट्र , धर्म , वचन,समाज की रक्षा के साथ अन्याय के लिए लड़ना कर्तव्य संस्कार के साथ स्थापित है। सत्य है कि  क्षत्रियत्व अतीत काल से देश, धर्म, न्याय, समाज की रक्षा और शासन का भार वहन करती रही है। राजपूत का शब्दार्थ है " राजा के पुत्र अथवा शासकों के वंशज।" राजपूत ही सही मायने में क्षत्रिय है जिन्होंने बलिदानों के यज्ञ में अपने प्राणों कि आहुतियां दी । * जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया  प्रत्येक राजा प्रायः क्षत्रिय हुआ करते थे। अतः राजपूत्र का अर्थ क्षत्रिय से माना गया। प्राचीन वर्ण व्यवस्थानुसार इसी जाति का नाम क्षत्रिय है । मनुस्मृति में कहा कि " क्षत्रिय शत्रु के साथ उचित व्यवहार और कुशलता पूर्वक राज्य विस्तार तथा अपने क्षत्रित्व धर्म में विशेष आस्था रखना क्षत्रियों का परम कर्तव्य है।" हमेशा ब्राह्मणों का आदर -सम्मान और उनके वचन को ऊँचा प्राथमिकता दिए है। प्रजा का ख़्याल ,दुःख – पीड़ा स्वयं की तरह समझते है। ईश्वर का

जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया ? कब (jayabaan top ka nirmaan kisane karavaaya ? kab)

जयबाण तोप का निर्माण -महाराजा सवाई जलसिंह  जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया,सवाई जयसिंह जी ने जयबाण तोप का निर्माण करवाया था दुर्ग के कारखाने में तोपों में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित जयबाण एक अतिविशाल तोप है जो पहियों पर खड़ी एशिया की सबसे बड़ी तोप मानी जाती है तथा देसी - विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।  इस तोप की नाल 20 फीट लंबी है तथा इस तोप का वजन लगभग 50 टन है। जयबाण तोप से 50 किलोग्राम के 11 इंच व्यास के गोले दागे जा सकते हैं। इसको चलाने के लिए एक बार में 100 कि.ग्रा. बारूद भरा जता था। ऐसा अनुमान है कि इसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है। जनश्रुति है कि यह ग तोप केवल एक बार परीक्षण के तौर पर चलाई गई थी तब इसका गोला चाकसू में जाकर गिरा था। विशेष धातु से बनी इस तोप के मुंह पर हाथी, पृष्ठ भाग पर पक्षी युगल तथा मध्य में वल्लरियों के चित्र उत्कीर्ण है। जय गढ़ में डाली गई लगभग 9 अन्य तोपें भी वहां दमदमें में रखी हैं। तोप संयंत्र के पास एक छोटा सा गणेश जी का मंदिर भी है। संभवत: नयी तोप तो ढालने से पहले गणेश जी की उपासना की जाती थी। विजयगढी का निर्माण कब हुआ जय गढ़ के भीतर एक

History of alawar hindi in अलवर का इतिहास हिन्दी में

अलवर का इतिहास हिन्दी में -प्रतापसिंह प्रभाकर |  अलवर का इतिहास हिन्दी में जाने अलवर राज्य के संस्थापक: प्रताप सिंह प्रभाकर बहादुर (1775-1791) अलवर के राव राजा, राव महाबत सिंह के पुत्र, दक्षिण में एक छोटे से शहर मेचेरी के प्रमुख थे राजगढ़ से लगभग तीन मील की दूरी पर अलवर, रेलवे का एक स्टेशन। . History of meera bai उनका जीवन कठिन समय में बीता, जब मोगुल घर गिर रहा था, और अलग-अलग धर्मों और नस्लों के साहसी विघटित साम्राज्य के खंडहरों पर खुद के प्रभुत्व और भाग्य के लिए नक्काशी करने का प्रयास कर रहे थे। राव प्रताप ने जयपुर राज्य में एक उच्च स्थान धारण किया। वह अपने आप को चोमू के घर के प्रमुख के साथ एक सममूल्य पर मानता था, जो कि प्रमुख था, और उसके दावे एक समय में इतने अधिक थे, कि उसके संप्रभु ने दरबार में बैठने के लिए विवादों में से एक को स्वीकार करने पर सहमति व्यक्त की, जो घर पर बने रहे, जब सामान्य अधिकारी समान अधिकारों का दावा करते हैं। इसके अलावा, उनके व्यक्तिगत चरित्र ने उन्हें अभी भी उच्च स्थान दिया है। उन्हें रणथंभर के प्रसिद्ध किले को राहत देने के लिए भेजा गया था, जो कि महारों द्वारा घे