Kshtriyatva क्षत्रियत्व
क्षत्रियत्व! सृष्टि में मानव सभ्यता के उदय–विकास के साथ कर्म के आधार पर क्षत्रिय पुरुष का एक योद्धा के रूप में अवतरण हुआ।
राष्ट्र , धर्म , वचन,समाज की रक्षा के साथ अन्याय के लिए लड़ना कर्तव्य संस्कार के साथ स्थापित है। सत्य है किक्षत्रियत्व
अतीत काल से देश, धर्म, न्याय, समाज की रक्षा और शासन का भार वहन करती रही है। राजपूत का शब्दार्थ है " राजा के पुत्र अथवा शासकों के वंशज।" राजपूत ही सही मायने में क्षत्रिय है जिन्होंने बलिदानों के यज्ञ में अपने प्राणों कि आहुतियां दी ।
*जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया
प्रत्येक राजा प्रायः क्षत्रिय हुआ करते थे। अतः राजपूत्र का अर्थ क्षत्रिय से माना गया। प्राचीन वर्ण व्यवस्थानुसार इसी जाति का नाम क्षत्रिय है । मनुस्मृति में कहा कि " क्षत्रिय शत्रु के साथ उचित व्यवहार और कुशलता पूर्वक राज्य विस्तार तथा अपने क्षत्रित्व धर्म में विशेष आस्था रखना क्षत्रियों का परम कर्तव्य है।"
हमेशा ब्राह्मणों का आदर -सम्मान और उनके वचन को ऊँचा प्राथमिकता दिए है। प्रजा का ख़्याल ,दुःख – पीड़ा स्वयं की तरह समझते है। ईश्वर का अवतार इस कुल में हूवा है ।क्षत्रिय अर्थात् वीर राजपूत सनातन वर्ण व्यवस्था का वह स्तम्भ है जो भगवान की भुजाओं से जन्म पाया है।
*history of veer jaymalji medtiya
क्षत्रिय की उपाधि से अतंकृत क्षत्रिय के लिये गीता में कहा गया कि :- "शूरवीरता, तेज, धैर्य, युद्ध में चतुरता,युद्ध से न भागना, दान, सेवा, त्याग, शास्त्र ज्ञान , कुशल शासक क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्तव्य–कर्म कहे गये हैं। "
क्षत्रियों ! अंत में कहूँगा:- " सिर्फ सांसे चलते रहने को ही ज़िन्दगी नही कहते आँखों में कुछ ख़वाब, दिल में उम्मीदे लिए फिर से दृढ़ संकल्प के साथ अपने पूर्वजों के मार्ग पर चलकर क्षत्रिय समाज के उज्जाले का सूरज उदय करना है।जिसके प्रकाश से भारत विश्व में प्रेम , भाईचारे, प्रगति के साथ महाशक्ति के शिखर पर स्थापित हो जाए।"
जय क्षत्राणी
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