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जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया ? कब (jayabaan top ka nirmaan kisane karavaaya ? kab)

जयबाण तोप का निर्माण -महाराजा सवाई जलसिंह 

जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया,सवाई जयसिंह जी ने जयबाण तोप का निर्माण करवाया था दुर्ग के कारखाने में तोपों में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित जयबाण एक अतिविशाल तोप है जो पहियों पर खड़ी एशिया की सबसे बड़ी तोप मानी जाती है तथा देसी - विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। 
जयबाण तोप का निर्माण किसने करवाया
इस तोप की नाल 20 फीट लंबी है तथा इस तोप का वजन लगभग 50 टन है। जयबाण तोप से 50 किलोग्राम के 11 इंच व्यास के गोले दागे जा सकते हैं। इसको चलाने के लिए एक बार में 100 कि.ग्रा. बारूद भरा जता था। ऐसा अनुमान है कि इसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है। जनश्रुति है कि यह ग तोप केवल एक बार परीक्षण के तौर पर चलाई गई थी तब इसका गोला चाकसू में जाकर गिरा था। विशेष धातु से बनी इस तोप के मुंह पर हाथी, पृष्ठ भाग पर पक्षी युगल तथा मध्य में वल्लरियों के चित्र उत्कीर्ण है। जय गढ़ में डाली गई लगभग 9 अन्य तोपें भी वहां दमदमें में रखी हैं। तोप संयंत्र के पास एक छोटा सा गणेश जी का मंदिर भी है। संभवत: नयी तोप तो ढालने से पहले गणेश जी की उपासना की जाती थी।

विजयगढी का निर्माण कब हुआ

जय गढ़ के भीतर एक लघु अंतः दुर्ग भी बना है सशस्त्र किलेबंदी से युक्त इस गढ़ी में महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने प्रतिद्वंदी छोटे भाई विजय सिंह को कैद रखा था। वर्षों तक यहां कैद रहे विजय सिंह के नाम पर यह लघु गढ़ी विजयगढ़ी कहलाती है।

तत्पश्चात किसका उपयोग सिलहखाने (शस्त्रागार) के रूप में किया जाता रहा । विजयगढ़ी के प्रवेश द्वार पर लोहे के तराजू और बांट पड़े रहते थे। संभवत इनका उपयोग बारूद तोलने के लिए किया जाता था। विजय घड़ी के पार्श्व में एक सात मंजिला प्रकाश स्तंभ बना हुए है जो दीया बुर्ज कहलाता है। आक्रांता शत्रु की गतिविधियों पर निगाह रखने की दृष्टि से इसका विशेष महत्व था। दीया बुर्ज के आगे तोप रखने का दमदमा है। आमेर जयपुर के पराक्रमी कच्छवाहा शासकों ने मुगल शासकों की तोप ढालने की तकनीक को बहुत नजदीकी से देखा था । तोप मध्य काल के अंतिम चरण तक युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाती थी। 

अतः बहुत संभव है कि दूरदर्शी व कूटनीतिज्ञ कच्छवाहा नरेशों ने तोप ढालने की मुगल तकनीक को अपनाते हुए गुप्त रूप से अपनी राजधानी (आमेर फिर जयपुर ) के निकट अवस्थित जयगढ़ दुर्ग को इस कार्य के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समझा। जयगढ़ दुर्ग के सदियों तक एक विचित्र प्रकार की रहस्यात्मकता से मंडित होने के पीछे यह एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण था। क्योंकि मुगल आधिपत्य के समय उनकी तकनीक को यों चुराकर तोंपें ढलवाना उस समय गंभीर अपराध की कोटि में आता था, जो राज्य के लिए शाही कोप का कारण बन सकता था।

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