रूणिचा का इतिहास
history of runicha.राजस्थान के रूणिचा का इतिहास ख्याति प्राप्त पंच पीरों में श्री रामदेवजी प्रथम स्थान रखते है। ( पीर - हिंदू धर्म के वे सिद्ध पुरुष जिन्हे मुस्लिम समुदाय में भी आराध्य के रूप में स्मरण करते है।
राजस्थान के लोक - देवताओं में रामदेवजी का स्थान सर्वोपरि है । ये तंवर वंशीय राजपूत थे। इनके पिता का नाम अजमल/ अजमाल जी तंवर एवम् माता का नाम मैणादे था।
मारवाड़ रा परगना री विगत, रामसा पीर री ख्यात तथा तंवर री ख्यात में मल्लीनाथ जी और रामदेवजी के आपस में मिलने , मल्लीनाथ जी द्वारा पोकरण का इलाका रामदेव जी को देने तथा यहां रामदेव जी द्वारा भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का दमन करने आदि का विस्तृत विवरण मिलता है जिससे पता चलता है कि रामदेव जी मल्लिनाथ जी के समकालीन थे।
वीर दुर्गादास राठौड़ का बलिदान
रामदेव जी के पराक्रम और उनकी प्रतिष्ठा की ख्याति सुनकर अमरकोट के दलजी सोढा ने अपनी पुत्री नेतल दे का संबंध रामदेव जी के साथ कर दिया। उनका विवाह माघ शुक्ला एकादशी मंगलवार को हुआ।
रामदेव जी ने अपनी भतीजी के विवाह में जगमाल मालावत के पुत्र हमीर को पोकरण दायजे में देने के बाद रामदेवरा नामक गांव बसाया। वहीं पर उन्होंने संवत् 1515 (1458 ईस्वी) की भाद्र शुक्ल ग्यारस को जीवित समाधि ले ली। यह स्थान रुणिचा कहलाता है।
रामदेव जी नए केवल भी व्यक्ति थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे उनकी प्राप्त वाणी जो अब तक प्रचलित है उनके विचारों और कार्यों पर प्रकाश डालती है इनकी वाणी से पता चलता है कि इनका कर्मवाद में अटल विश्वास था इनका कथन है कि " मनुष्य अपने कर्मों से इस संसार में आवागमन के चक्कर में फंसा रहता है जिस से मुक्ति पाने का एकमात्र साधन नाम - स्मरण है।"
रूणेचा मेला : रामदेवजी की स्मृति में रूणेचा धाम में भरने वाला मेला राजस्थान में धार्मिक सौहार्द का सबसे बड़ा मेला है जहां विभिन्न हिंदू जाति के लोगों के अतिरिक्त मुस्लिम समुदाय में बाबा के दर्शन हेतु आते है । यहां " जय रामसा पीर और जय बाबा री " मुख्य स्मरण उद्घोष है ।
ज्ञातव्य हो कि मुस्लिम शासकों द्वारा जबरन मुस्लिम धर्म में बदले हिंदू पुरुषों व स्त्रियों को विधि पूर्वक रामदेवजी ने वापस हिन्दू धर्म ग्रहण करवाया था जिसके कारण इन्हें धर्म सुधारक के रूप में भी स्मरण किया जाता है ।
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