गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा
गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा 10 वीं शताब्दी के लगभग अंत में मरुप्रदेश के चौहानों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रारम्भ कर दिये थे। इसी स्थापनाकाल मे घंघरान चौहान ने वर्तमान चुरू शहर से 10 किमी पूर्व मे घांघू गाँव बसा कर अपनी राजधानी स्थापित की।
राणा घंघ की पहली रानी से पुत्र हर्ष तथा एक पुत्री जीण का जन्म हुआ। लोककथाओं के अनुसार राणा घंघ की पहली रानी एक परी थीं जो हर्षदेव व जीण को जन्म देकर अपने लोक वापस चली गईं बाद में हर्षदेव व जीण बाई दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव के रूप में जन-जन के पूज्य हैं।
गोगा देव जी के जन्म का इतिहास और वंश परम्परा कि नींब राणा घंघरान की दूसरी रानी से कन्हराज, चंदराज व इंदराज हुये। कन्हराज के चार पुत्र अमराज, अजराज, सिधराज व बछराज हुये। कन्हराज का पुत्र अमराज (अमरा) उसका उत्तराधिकारी बना। अमराजका पुत्र जेवर(झेवर) उसका उत्तराधिकारी बना। लेकिन उदार व पराक्रमी जेवर ने घांघू का राजपाट अपने भाइयों के लिए छोड़ दिया और सुदूरवर्ती बीहड़ क्षेत्र दादरेवा को राजधानी बनाकर साम्राज्य विस्तार किया । गोगाजी महाराज का जन्म इसी ददरेवा गाँव में चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 ( मुंशी देवीप्रसाद ने जन्म समय वि. सं. 1070 माना है ) हुआ । आज यह गाँव चुरू जिले में आता है
उनके जन्म को लेकर भी एक जनश्रुति प्रचलित है गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
जेवर जी की असामयिक मृत्यु के कारण उनका विजय अभियान तो रुका ही उनके अवयस्क किशोर पुत्र गोगा (गोगदेव जी) चौहान के कन्धों पर राज्य का भार आ पड़ा। माँ बाछलदे के संरक्षण में वे ददरेवा के राणा बने बाछलदे की बड़ी बहन आछलदे को भी इन्हीं संत तपस्वी योगी गोरखनाथ के अशीर्वाद से अर्जन-सर्जन नामक दो वीर पुत्र पैदा हुये थे।
History of veer jaymalji medtiya
दोहा -
गौगा बांगड़ भौम रा, रण मझ झूझ्या वीर ।
समर धरा री साधना , पूजिजे पंच पीर
क्षत्रिय अमर बलिदानी वीर गोगा जी चौहान ☀️
गोगा देव चौहान जिन्हें आज गोगाजी के नाम से #लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। मंदिर लूट कर जाते हुए महमूद गजनवी से संघर्ष करने की उनकी कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी नहीं थी न उनके राज्य को कोई खतरा था। परंतु सनातन संस्कृति के मानबिन्दुओं का अपमान करके अपनी लोलुपता में अनाचार करने वाले आततायी से संघर्ष करने के लिए केवल एक ही कारण पर्याप्त था और वह था - क्षात्रधर्म। इसी क्षात्रधर्म के पालन के लिए गोगादेव जी ने आस-पास के सभी राजाओं को #महमूद_गजनवी पर आक्रमण के लिए बुलाया। दुर्भाग्यवश जब अन्य राजा समय पर नहीं पहुंच सके तो अपने 400-500 सैनिकों व परिवार जनों के साथ गजनवी की हजारों की फौज से संघर्ष करने से बचने के लिए परिस्थितियों पर दोष डालना अस्वाभाविक नहीं होता। परंतु कर्त्तव्यपालन के मार्ग में परिस्थितियों के बंधन और मृत्य के भय के बहानों को सच्चा क्षत्रिय स्वीकार नहीं करता। वह तो ऐसी मृत्यु को सौभाग्य मानता है और इसीलिए गोगादेव जी ने 80 वर्ष की उम्र अपने परिवार जनों और सैनिकों के साथ अपना बलिदान कर कर्त्तव्य की मांग को पूरा किया। इसी बलिदान के कारण आज भी वे जनमानस में देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
#गोगा_नवमी पर हम भी कर्त्तव्य की मांग को पहचानें और आगे बढ़कर क्षत्रियोचित संघर्ष में प्रवृत्त हो सकें ऐसी प्रार्थना करते हुए ऐसे महापुरुष के चरणों में शत-शत वंदन।
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