भानगढ़ – एक परिचय (Bhangarh – An Introduction) :
भानगढ़ ( bhangardh ) का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। यह आमेर के कच्छवाहा राजवंश के शासक माधो सिंह प्रथम का रिहाइश दुर्ग था, जिसका निर्माण 16 शताब्दी में हुआ।
किले से कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान है।
भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। सामरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है। सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है।
सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके पश्चात राज महल स्थित है। इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं।
इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में बाबड़ी है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं ।
वर्तमान में यह दुर्ग कई भूतिया कहानियों से और काले जादू के कारण निषेद दुर्ग हो चुका है जिसके पीछे कई मत प्रचलित है। कहा जाता है माधो सिंह के पश्चात की पीढ़ियों में कुछ अनहोनी घटनाएं यहां घटी जिससे वहां की जनता की अकाल मृत्यु हुई और उनकी आत्माएं आज भी यहां भटक रही है ।
किलें में सूर्यास्ता के बाद प्रवेश निषेध (Entrance Prohibited after Sunset) :
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्तक हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्ता के बाद इस इलाके में किसी भी व्यतक्ति के रूकने के लिए मनाही है।
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भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है। गौर करने वाली बात है जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से दूर बनाया है।
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