बोराज का युद्ध boraj ka yuddh ( संवत् 1843 )झुंझार जी : श्री जवान सिंह जी खंगारोत ठि. सीतारामपुरा ( देवली मय शिलालेख - बोराज गढ़ )
बोराज गढ़ ( जयपुर ) खंगारोत ( कच्छवाहा ) सरदारों के शौर्य का प्रतीक है । यह गढ़ ऐतिहासिक समयकाल में अनेकों युद्धों के भीषण प्रहारों का साक्षी रहा है।
ऐसा ही एक युद्ध संवत् 1843 को हुआ जब चंद संख्या में जवान सिंह जी खंगारोत के नेतृत्व में बोराज की प्रजा व गढ़ की सुरक्षा हेतु तैनात खंगारोत सरदारों ने महादजी सिन्धिया के सेनानायक रायजी पटेल के नेतृत्व में 5000 मराठा सैनिकों के आक्रमण को अपनी वीरता शौर्य के बुते विफल कर लुटेरे मराठाओं को दांतों तले चने चबवा दिए।
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यह युद्ध जवान सिंह जी खंगारोत एवं उनके 17 खंगारोत भाइयों ने 5000 मराठा सैनिकों के विरुद्ध लड़ा जिसमे विरोधियों को औंधे मुंह की खानी पड़ी , इसके बाद मराठा सैनिक भाग खड़े हुए , लेकिन जवान सिंह जी और उनके साथी गण युद्ध में खेत रहे ।
इस युद्ध की स्मृति में बोराज गढ़ के बाहर एक देवली स्थापित है जिसमें "बोराज गढ़" पर माघ बदि 14 वि. सं. 1843 को सेना के आक्रमण को विफल करने वाले तथा बोराज प्रजा की जान-माल सुरक्षार्थ एकेले दम पर मराठाओं को धूल चटाने वाले श्री जवान सिंह जी खंगारोत सहित 17 अन्य खंगारोत भाई जो झुंझार हुए का शिलालेख लगा हुआ है।
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नोट :इतिहास में न जाने कितने ही योद्धा अनछुए रह गए है जिनको इतिहास के पन्नों पर जगह नहीं दी गई, यह बहुत दुर्भाग्य की बात है । लेकिन ये सभी आज भी गांवों और ढाणियों में भोम्या और झूंझार जी के रूप में आज भी पूजे जाते है ।
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