राजपूताना के वीर योद्धा महाराणा प्रताप आज ही के दिन इस वीरभूमि अलविदा कह गये थे पर उनकी राष्ट्र ओर धर्म रक्षा के लिए किये संघर्ष आज भी हमारे दिलों में बसते है।
बात तब कि हे जब मुगलों ने चितौड़ पर आक्रमण किया था ओर जनता ने अपनी जान बचाने के लिए जंगलों में शरण ली थी।चितौड़ के राजा महाराणा प्रताप ने इन मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं की ओर पुनः सेना के संगठन में लग गये तब जंगलों में छिपे लोगो को जब चित्तौड़ में हुए व्यापक और लोमहर्षक नरसंहार का पता चला तो उनका खून खौल उठा। उन्होने चित्तौड़ आकर देखा कि चारों ओर आग की लपटे उठ रही है। इन लोगो का जोश जागा और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने की ललक उनमें उठी। जी हां हम बात कर रहे है महाराणा प्रताप के उन विश्वस्त सहयोगियों और भारत माता के सपूतो की जिनको सारा देश आज गाडोलिया लुहार के नाम से जानता है। उस समय महाराणा प्रताप की असली ताकत थे ये गाडोलिया लौहार।
इतिहास बताता है कि महाराणा के साथियों जिनमें बड़ी संख्या में ये गोडोलिया लुहार शामिल थे ने भी ऐसा ही संकल्प लिया था कि जब तक उनकी मातृभूमि पर उनका अधिकार नहीं होगा तब तक वे घुमक्कड़ रूप् में ही जीवन यापन करेगे अर्थात एक स्थान पर स्थायी ठिकाना बनाकर नहीं रहेगे। उस समय की परिस्थितियों के अनुसार यह एक अनुकूल निर्णय था किंतु तब से लेकर आज तक ये गोडोलिया लुहार दर-दर की ठोकरे खाते दिखाई देते है। एक सामान्य सी बनी लकड़ी की बैलगाड़ी, चन्द टूटे-फूटे बरतन और सीमित संसाधनों के बल पर ये लोग आज भी पूरे देश में घूमते देखे जा सकते है।
आज भी ये कठिन मेहनत करते हैं।मुझे कुछ दिन पहले जोधपुर के गाँव में इनका डेरा दिखाई दिया ओर मैं अपने लिए एक कृषि का औजार बनाने का आर्डर देकर वही बैठ गया।शाम हो चली थी ओर दिसम्बर के महीने में ठंड भी पड़ने लगी थी।बातों ही बातों में मैंने उन परिवार के सबसे बुजुर्ग "शेरो बा" से बहुत सी बातें जानी।संघर्ष शील जीवन की उनकी जीवनी को कभी फिर लिखूंगा मित्रों
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