महाराणा (अमृत पुत्र )
चुण्डाजी महाराणा लाखा के जेष्ठ पुत्र थे एक दिन लाखा दरबार में बैठे हुए थे तब मंडोर के शासक रणमल राठौर की बहन हंसा बाई का नारियल लाखा के पुत्र कुंवर चुण्डा के लिये आया
उस समय चुण्डा दरबार में उपस्थित नहीं था तब महाराणा ने हंसी में कह दिया कि जवानों के लिए नारियल आते है हमारे जैसों बूढो के लिए कौन भेजे । यह बात चुण्डा तक पहुंच गई और उसने प्रतिज्ञा कि जिस वैवाहिक संबंध को पिता ने परिहास किया वह स्त्री तो मेरी माता के समान है ।
उससे मैं विवाह नहीं करूंगा । इस पर रणमल राठौड़ ने कहा कि यदि राठौड़ राजकुमारी से उत्पन्न राजकुमार मेवाड़ का स्वामी बने तो हंसा का विवाह लाखा से कर दुंगा
इस पर चुण्डा ने कहा मैं राठौड़ राजकुमारी के उत्पन्न राजकुमार को ही मेवाड़ की गद्दी पर बैठाउंगा। लाखा के छोटे से परिहास ने पितृभक्त चुण्डा के जीवन को बदल दिया हंसाबाई के गर्भ से लाखा को मोकल नामक पुत्र हुआ ।
चुण्डा के त्याग से प्रसन्त्र होकर लाखा ने चुण्डा को मोकल का संरक्षक नियुक्त किया । यह नियम बनाया कि भविष्य में मेवाड़ के सभी पटटे, परवान तथा समदो पर चुण्डा व उनके वंशजों के द्वारा ही भाले का राजचिह्न लगाया जायेगा ।
चुण्डा के त्याग और दृढ़ प्रतिज्ञ होने से अमृत पुत्र मेवाड़ के भीष्म कहलाये
चुण्डाजी महाराणा लाखा के जेष्ठ पुत्र थे एक दिन लाखा दरबार में बैठे हुए थे तब मंडोर के शासक रणमल राठौर की बहन हंसा बाई का नारियल लाखा के पुत्र कुंवर चुण्डा के लिये आया
उस समय चुण्डा दरबार में उपस्थित नहीं था तब महाराणा ने हंसी में कह दिया कि जवानों के लिए नारियल आते है हमारे जैसों बूढो के लिए कौन भेजे । यह बात चुण्डा तक पहुंच गई और उसने प्रतिज्ञा कि जिस वैवाहिक संबंध को पिता ने परिहास किया वह स्त्री तो मेरी माता के समान है ।
उससे मैं विवाह नहीं करूंगा । इस पर रणमल राठौड़ ने कहा कि यदि राठौड़ राजकुमारी से उत्पन्न राजकुमार मेवाड़ का स्वामी बने तो हंसा का विवाह लाखा से कर दुंगा
इस पर चुण्डा ने कहा मैं राठौड़ राजकुमारी के उत्पन्न राजकुमार को ही मेवाड़ की गद्दी पर बैठाउंगा। लाखा के छोटे से परिहास ने पितृभक्त चुण्डा के जीवन को बदल दिया हंसाबाई के गर्भ से लाखा को मोकल नामक पुत्र हुआ ।
चुण्डा के त्याग से प्रसन्त्र होकर लाखा ने चुण्डा को मोकल का संरक्षक नियुक्त किया । यह नियम बनाया कि भविष्य में मेवाड़ के सभी पटटे, परवान तथा समदो पर चुण्डा व उनके वंशजों के द्वारा ही भाले का राजचिह्न लगाया जायेगा ।
चुण्डा के त्याग और दृढ़ प्रतिज्ञ होने से अमृत पुत्र मेवाड़ के भीष्म कहलाये
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