महारावल अमरसिंह जैसलमेर1716
महारावल अमर सिंह संवत 1716 वि. ई. को जैसलमेर के राजसिंहासन पर विराजे (महारावल सबल सिंह के पुत्र)। इनके 13 रानिया थी ।
१.मेड़ता के ठाकुर भवसिंह की पुत्री दीपकंवर
२.हलवद के झाला अणदसिंह की पुत्री अनोपकंवर
३.गढ़ रतलाम के जोधा राजा रतनसिंह की पुत्री प्रतापकुंवर
४.गाँव हरसोलाव के चांपावत महेसदाश की पुत्री दीपकंवर
५.जसोल के महेचा ठा. महासिंह जी की पुत्री चांपाकुंवर
६.सोढा जोगीदास की पुत्री रायकंवर
७.कोटड़ा के कोटड़ीया गोविन्ददास की पुत्री अमेद कंवर चार रानिया सती हुयी | .
पुत्री विजेकंवर गढ़ जोधपुर के जेसेजी ने परणाया | उदेकंवर बाई राजा अजीतसिंह ने परणाया गढ़ जोधपुर लाल बाई राजा अमरसिंह ने परणाया पेमकंवर बाई राजा सूरसिंह ने गढ़ वनेडे | इनके पुत्र :
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१.जसवंतसिंह २.दीपसिंह ३.विजेसिंह ४.कीरतसिंह ५.सामसिंह ६.जैतसिंह ७.केसरसिंह ८.जुझारसिंह ९गजसिंह १०.फतेसिंह ११.मोकमसिंह १२.जयसिंह १३.हरिसिंह १४.इन्द्रसिंह १५ माहकरण सिंह १६.भीमसिंह १७.जोधसिंह १८.सुजानसिंह .
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महारावल अमरसिंह महावीर और अत्यंत साहसी थे | इनके सिंहासन बैठते ही सिंध प्रान्त के बलोच और चनों ने इनके अधीनस्थ रोहड़ी प्रदेश पर आक्रमण किया | वहां दुर्ग रक्षार्थ जो भाटी सरदार थे उन्होंने उनका सामना किया किन्तु ये अत्यंत अल्प संख्या में होने से उनके वेग को न रोक सके | उन्होंने दुर्गस्त भाटी महिलाओं को जोहर करने की सहमती दी तदानुसार उन महिला ने रोहड़ी के उतंग परवत पर अपने नश्वर शरीरों को अग्नि भस्मीभूत कर स्वर्ग प्राप्त किया | यह पहाड़ी सतियों की पहाड़ी के नाम से विख्यात है और वहां अब भी चेत्र शुक्ल पूनम को उन वीर महिलाओं की पूजा करने बहुत से लोग जाते है। इसके बाद भाटी दुर्ग से बहार निकलकर काल के समान रणभूमि में कूद पड़े और भंयकर युद्ध होने लगा।| उसी समय महारावल अमरसिंह भी अपनी सेना के साथ वहां आ पहुंचे। यह देख यवन सेना के पैर उखड़ने लगे और वे यहां से भागन लगे। महारावल ने भागते हुए यवनों को घेरकर उनका सर्वनाश कर दिया | इस विजय के पश्चात् महारावल ने बहुत वर्षों तक वहीँ निवास किया उन्होंने वहां बखर दुर्ग का जीर्णोधार किया और सिन्धु नदी में से अमरकस नामक नहर निकलवाई महारावल ने आपने नाम से अमरसाही टोल अपने राज्य में प्रचलित किया | महारावल से परास्त होकर यवनों ने संधि कर ली | उस समय का दोहा है |
" सखर बखर रोहड़ी साकोटी सीया |
ओहली रावल अमरसिंह पहली भर मीया || "
इधर इनके सामंत सुन्दरदास और दलपतसिंह ने बीकानेर के झज्जू गाँव को लुट कर जला दीया | इस पर झज्जू कांधलोतों का दमन करने के लिए भाटी सामंतों ने एकत्रित होकर उनका पीछा किया और उनसे युद्ध कर लूट का मॉल वापिस छीन लिया | महारावल अमरसिंह इस समय वापस जैसलमेर आ गए और यह व्रतांत सुनकर प्रसन्नता प्रकट की किन्तु बीकानेर के तत्कालीन महाराजा अनूपसिंह इससे बहुत क्रोधित हुए | और राठोड़ सेना के साथ हिसार सेना को सम्मिलित कर जैसलमेर पर आक्रमण करने भेजा यह खबर पाकर महारावल राठोड़ों की सेना का मुकाबला करने को अपनी सीमा पर जा पहुंचे वहां भयंकर युद्ध हुआ | जिससे महारावल ने हिसार की यवन सेना सहित राठोड़ सेना को पराजीत कर दिया पुगल के राव ने जैसलमेर का सामंत होते हुए भी इस युद्ध में महारावल का साथ नहीं दिया | अतः उनको भी उचित शिक्षा दी इन्होने कोटड़ा और बाड़मेर के राठोड़ सामंतों को भी अपने अधीन कर लिया | महारावल ने आपने बाहुबल से और भी कई युद्ध जीते परन्तु संतान न होने से ये उदास रहा करते थे | ऐक रामनुज संप्रदाय के अनतराम नामक ऐक तेजस्वी साधू जैसलमेर आये | महारावल ने उनका सहर्ष स्वागत किया | इस भक्ति से प्रसन्न हो महात्मा वहां रहने लगे | ऐक दिन अवसर पाकर महारावल ने आपने मनोरथ की प्राथना की यह सुनकर महात्मा ने कहा की आपके कार्य के सिद्धि के लिए में 41 दिन तक प्रयोग करूँगा इस समय में मेरे पास कोई आने न पाए | परन्तु महारावल इस बात को भूल कर देवयोग से अठारहवें दिन हि महात्मा के पास दर्शनार्थ चले गए | महात्मा ने इनको नीयत समय से पहले आया देख मुस्कराकर कहा की हे रावल यदि नियत समय से पहले मेरी साधना में बाधा न करते तो तुम्हारे ऐक चक्रवती पुत्र होता परन्तु अब तुम्हारे ऐक स्थान में अठारह पुत्र सामान्य होंगे तदानुसार श्री महारावल की ग्यारह रानियों से 18 पुत्र हुए | उन 18 पुत्रों में 14 की संतान है | चारणों द्वारा ऊंट चुराने पर पुनः लाना अमरसिंह के राजत्व काल में क्षुभा पीड़ित चारणों ने एकत्रित होकर रात्री के समय राज्य के ऊँटों को चुरा लिया |
चारणों की इस तस्करता का हाल सुनकर महारावल ने अपनी उदारता से उनको दंड देना उचित न समझा और स्वयं चारणों के पास जाकर उनको प्रति ऊंट बीस रूपये प्रदान कर अपने ऊँटों को लोटा लाये | :; अमरसागर सरोवर का निर्माण :;
महारावल ने जैसलमेर से सम सडक पर चार किलोमीटर पर अपने नाम से ऐक अमर सागर तालाब का निर्माण करवाया | अमरेश्वर महादेव की स्थापना की | अपने-आपने नाम से अम्र बाव तथा महारानी के नाम से अनूपबाव का निर्माण करवाया | ये 1756 वि. में बनवाये थे | अमरसागर में ऐक बाग भी लगवाया | महारावल अमरसिंह ने राव वेणीदास को लाख पसाव का दान दिया | अमरसिंह 41 वर्ष राज्य कर सं.1759 की वि.को स्वर्ग सिधारे।
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