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History of rana punjaJi bheel



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राणा पूंजा मेवाड़ के एक भील योद्धा थे

 जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया था एवम् उनके वफादार रहे । युद्ध में पूंजा भील ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी। हल्दीघाटी के युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था, जिसे पूंजा भील के नेतृत्व में काम में लिया गया।
राणा पूंजा नाम सुनते ही हमारे सामने मेवाड़, हल्दीघाटी का युद्ध ,महाराणा प्रताप और राणा पूंजा का शौर्य हमारे सामने घूमने लग जाता है। राणा पूंजा जिसकी निष्ठा, काम, जिसकी वफादारी और शौर्य अगर स्वर्णिम अंकों में लिखा जाए तो भी कम है। राणा पूंजा अपने आप में वतन के प्रति वफादारी, निष्ठा, शौर्य, पराक्रम, शूरवीर , ईमानदारी की जितनी मेवाड़ वासियों और पूरा देश उनकी गाथा की प्रशंसा की जाए उतनी कम है! इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है, राणा पूंजा मेवाड़ एक भील योद्धा थे जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया था! जिनको महाराणा ने भीलाराणा की उपाधी देकर सम्मान दिया, जो उनका सम्मान था,राणा पूंजा ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए, मेवाड़ की सुरक्षा के लिए झोंक दी थी! हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहने में गोरिल्ला पद्धति प्रणाली का ही करिश्मा था, जिसे राणा पूंजा के नेतृत्व में काम में लिया गया था! कहा जाता है कि गुरिल्ला पद्धति युद्ध से ही हमेशा मुगल की सेना के छक्के छुड़ाये जाते थे ,मेवाड़ में जैसे ही मुगल सेना का सैनिक प्रवेश करता था, उसको गुरिल्ला पद्धति से वह कांपते रहता था, कहां से कौन सा तीर, किस वृक्ष से आएगा और मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएगा, इससे मुगल सेना हमेशा कांपती रहती थी ,उनको यह डर रहता था कि किस चोटी से ,किस कोने से एक तीर आएगा और मेरे प्राण ले जाएगा, यह अगर सारा श्रेय जाता है तो राणा पूंजा भील को और राणा पूजा के भील योद्धाओं को।इनके बलिदान और शौर्य के कारण ही मेवाड़ के राजचिन्ह में भील सेनानायक पुंजा का अंकन किया गया है । इतिहास में उल्लेख है कि राणा पूंजा भील का जन्म मे मेरपुर (कोटडा) के मुखिया दुदा होलंकी के परिवार में हुआ था ,उनकी माता का नाम केहरी बाई था ,उनके पिता का देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने मेरपुर का मुखिया बना दिया गया था, यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी,इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वह जल्दी ही भोमट के राजा बन गए ,अपनी संगठन और शक्ति और जनता के प्रति प्यार दुलार के चलते वह वीर नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़ में फैल गई, इस दौरान 1576 ईस्वी में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा, इस संकट के काल में महाराणा प्रताप ने भील राणा पूजा का सहयोग मांगा! ऐसे में पूंजा भील ने अपना कर्तव्य समझते हुए राणा प्रताप के साथ हो गए, ऐसे समय में भी मां के वीर पुत्र राणा पूंजा ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ अपने दल बल के साथ खड़े रहने का निर्णय लिया, महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और मेवाड़ के सभी भील सरदार मेवाड़ की रक्षा के लिए तत्पर हैं! इस घोषणा के लिए महाऱाणा प्रताप ने पूंजा भील को गले लगाया और अपना भाई समझा!ओर भीलाराणा की उपाधी दी, महाराणा प्रताप ने उस समय मेवाड़ में एक राजचिन्ह जो मेवाड़ का राज चिन्ह आज भी है ,मेवाड़ के राज चिन्ह में आज भी एक और राजपूत है तो दूसरी तरफ भील राणा पूंजा भील का प्रतिक बनाया गया यह राजचिन्ह आज भी मेवाड़ के सिटी पैलेस के ऊपर बहुत बड़े रुप में सुशोभित है !यही नहीं इस भील सरदार की उपलब्धियां और योग्यता से महाराणा और राजपूत सरदार प्रभावित होकर उन्होंने अपने राजचिह्न को मेवाड़ी पगड़ी जब महाराणा धारण करते थे तो उसके ऊपर यह राज चिन्ह को लगाया जाता था, जिस पर भील सरदार का प्रतीक चित्र है, जिसको मेवाड़ महाराणा अपने सिर पर ताज के रूप में रखते थे, इससे यह सिद्ध होता है कि जिन्होंने अपने देश और आन बान शान के लिए मेवाड़ के लिए अपना बलिदान और योगदान दिया और सभी के लिए मेवाड़ महाराणा ने कभी छुआछूत नहीं किया,भील सरदार को भी अपनी पगड़ी का सरताज बनाया!अपने माथे पर जगह दी! यह उदाहरण हिंदुस्तान में कहीं भी राज राजा व शासक में नहीं मिलता, यह केवल मेवाड़ में ही मिलता है! और यही नहीं मेवाड़ राजमाता जो महाराणा प्रताप की माता थी जयवंताबाई ने राणा पूंजा भील के राखी बांधकर अपना भाई बनाया जो पीढ़ी दर पीढ़ी राजपूत सरदार आज भी सभी भील समाज के लोगों को मामा कहकर पुकारते हैं ,यह अपने आप में भील और राजपूतों के बीच का जो अनुठा उदाहरण हैं।
हल्दीघाटी का युद्ध में योगदान :  1576ई. हल्दीघाटी युद्ध में राणा पूंजा ने अपनी सारी ताकत देश की रक्षा के लिए झोंक दी थी! हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णायक रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही यह करिश्मा था, जिसमें पूंजा भील के नेतृत्व में काम लिया गया !  आज राणा पूंजा भील की जयंती पर मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि हे राणा पूंजा भील तुम्हारा शौर्य, पराक्रम ,त्याग, और बलिदान यह मेवाड़ की धरा, यह भारत देश की धरा और हम कभी नहीं भूलेंगे ,आने वाली पीढ़ियों तक को तुम याद रहोगे, 

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