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History of veer ballusinghji radhore in Hindi

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वीर बल्लुसिंहजी राठौर 
जलम्यो केवल एक बार, परणी एकज नार।

लडियो,मरियो कौळ पर, इक भड दो-दो बार।। .

अर्थात – उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया। परन्तु अपने वचन(कौळ) का निर्वाह करते हुए वह वीर  दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ ।



मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में राठौड़ वीर अमर सिंह एक ऊंचे पद के मनसबदार थे। एक दिन शाहजहाँ के

साले सलावत खान ने भरे दरबार में अमर सिंह को हिन्दू होने कि वजह से अपमानित कर दिया।

अमरसिंह राठौड़ के अन्दर राजपूती खून था...

सैकड़ों सैनिको और शाहजहाँ के सामने भरे दरबार में अमरसिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका । शाहजहाँ कि सांस थम गयी..और इस शेर के कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे । अफरा तफरी मच गयी। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे। मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे। शाहजहाँ ख़ुद जनानखानें में भाग गया ! अमर सिंह निडर होकर अपनी हवेली लौट आये।

अमर सिंह के साले का नाम था अर्जुन गौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था। बादशाह ने उसे लालच दिया। उसने अमर सिंह को बहुत समझाया-बुझाया और धोखा देकर बादशाह के महल में ले गया।

वहां जब अमर सिंह आगरे के गढ़ के छोटे दरवाजे से होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ ने पीठ पीछे से वार करके उन्हें मार दिया !

ऐसे हिजड़ों जैसी बहादुरी से उनको मरवाकर शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुआ ..उसने अमर सिंह की लाश को

किले की बुर्ज पर डलवा दिया। धिकार उस बादशाह को जिसनें उसकी वीरता की कद्र करनें की बजाय उनकी लाश को इस प्रकार चील-कौवों को खाने के लिए रखा !

अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के

बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से  अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !

उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'

वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच

गया। महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !

बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।

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