जोधपुर के महान पराक्रमी राव जोधाजी के जितने पुत्र हुवे उनमें उन्ही के अनुरूप वीर और वैष्णव भक्त उनके चतुर्थ पुत्र राव दूदाजी हुवे !
जिन्होंने अपनें बाहुबल से मालवा के महबूब ख़िलजी से मेड़ता जीता और उसको नये तरीके से बसाया,राव दूदाजी की संतति मेड़ता में रहने के कारण मेड़तिया कहलाये ! उनके ज्येष्ठ पुत्र राव विरमदेव हुवे और सबसे छोटे पुत्र रतनसिंह,जिनकी पुत्री विष् पीकर अमृत बरसानें वाली भक्त शिरोमणी मीरांबाई !! राव वीरम और उनके सभी पुत्र वीर हुवे,जिनका अपना अलग इतिहास रहा है पर उनमें जेष्ठ पुत्र राव चांदाजी थे जिनका जन्म वि.सः 1562 ज्येष्ठ सुदि अष्ठमी को हुवा !(चांदावतों के इतिहास के मुताबिक) चाँदाजी के भ्राता वीर जैमल जी का जन्म वि.सः1564 आसोज सुदी एकादसी को हुआ !
(जैमलवंसप्रकास-लेखक-गौपालसिंह बदनोर के अनुसार) इससे ये होता ज्ञात होता है की चांदाजी जैमलजी से दो वर्ष
बड़े थे ! जहाँ तक मेड़ता की राजगादी पर बैठने का सवाल है तो जैमलजी अपनें पिता की पाटवी संतान नही थे फिर
भी उत्तराधिकारी हुवे ! क्यों की उस समय राजाओं की मर्जीदान रानियों की संतति को पाटवी नही होते हुवे भी राज्य मिलना कोई नई बात नही थी ! इतिहास में ऐसे अनेको अनेक उदाहरण है की ज्येष्ठ नही होते हुवे भी वो राजा हुवे ! सबसे बड़ा उदाहऱण उनके परदादा राव जौधाजी का है जिनके बड़े भ्राता अखेराजजी उत्तराधिकारी नही बनें और छोटे भाई जौधाजी राव रणमल की गद्दी बेठे !
राव चांदाजी के पिताजी की ये इच्छा थी की उनका उत्तराधिकारी जैमल बनें ! चांदाजी नें महाभारत में भीष्म जैसा आदर्स प्रस्तुत किया और हमेशा के लिए राजगद्दी का परित्याग कर दिया !
बचपन में राव चाँदाजी अपंग थे और उनके सेवक उनको बाग में घुमानें लेके गए वहाँ पर नाथ पंथ की बड़ग साखा के प्रसिद्ध योगी हांडी बड़ग नें उनको अपने योगबल से ठीक कर दिया !
चांदाजी के पिताश्री राव वीरमजी ने महात्मा हांडी बडंग को अपने राजमहल में न्यौता दिया और उनके भोजन के लिए लड्डुओं से भरा थाल परोसा ! महात्मा ने लड्डू उठा उठा कर चांदाजी के ऊपर फेंकनें सुरु किये,उन्होंने 24 लड्डू फेंके होंगे की चांदाजी के धाय भाई रूपा ने महात्मा का हाथ पकड़कर उनको निवेदन किया की बापजी चांदाजी तो अभी अबोध शिशू है आप मेरे ऊपर फेंक दीजिये ! महात्मा हांडी बडंग नें रूपा को कहा अगर तूँ मेरा हाथ नही पकड़ता तो इसको मैं अमर कर देता इस पर किसी भी अस्त्र-सस्त्र का
कुछ प्रभाव नही होता,पर चांदा तूने 24 लड्डू खाने तक हिम्मत रखी इसलिए 24 युद्ध में तेरी जीत होगी ! इतिहास में वो 24 युद्ध "चांदाजी रा चौबीस परवाड़ा" के नाम से विख्यात हुवे !
असल वीर इतिहास रो,धिन चांदो राठौड़ !
चौइस परवाड़ा चावा हुवा,न्यारी न्यारी ठोड़ !!
वीरवर चांदाजी को उनके पिताश्री ने उनकी वीरता पर खुश होकर कुंवरपदे में ही जागीर दी ! जहाँ उन्होंने बलुन्दा ग्राम बसाया जो उनकी जागीर का मुख्य् केंद्र था !
राव चांदाजी को बड़ी बड़ी फौजों से टकराने की समझ थी ! उनकी पूरी जिंदगी युद्धरत बीती ! जोधपुर के राव मालदेवजी और राव चांदा जी के लघु भ्राता मेड़ता के राव जैमलजी के उनके पिता वीरम के समय से ही वैर था ! राव मालदेवजी के तो मेड़ता हमेशा से खटकता था इसलिए उन्होंने 22 बार मेड़ते पर हमले किये ! राव चांदाजी हमेशा जोधपुर की तरफ रहे ! चांदाजी के एक सग्गे भाई थे ईसरदासजी जो अपने अंतिम समय तक जैमलजी की तरफ थे और जैमलजी के सग्गे भाई जग्गमालजी जो हमेशा मालदेवजी की तरफ थे(सग्गे भाई का यहाँ पर एक माँ से पैदा हुवे से है )एक बार मालदेव जी ने अपनी पूरी फौज के साथ मेड़ता पर हमला किया फौज की तीन टुकड़ियाँ की,पहली टुकड़ी जगमालजी के न्रेतत्व में,दूसरी टुकड़ी मालदेवजी स्वम् लेकर आये और तीसरी टुकड़ी राव चांदाजी के पास थी ! सबसे पहले खुद मालदेव ने हमला किया उनको पूरी तरह हार का सामना करना पड़ा उनकी तलवार,नगाड़ा,निसाण सभी मेड़तियों ने छिन लिए,दूसरा हमला जग्गमाल जी ने किया वो भी हार गए पर राव चांदाजी ने हमला नही किया और मालदेवजी की हारकर भागती हुई सेना से लाम्बियाँ में मिले और सकुसल उनको जोधपुर पहुँचाया ! चांदाजी ने कभी भी अपनें भाई जैमल का बुरा नही किया परन्तु वो अपने छोटे भाई के अधीन नही रहना चाहते थे !
राव मालदेवजी के देहांत के बाद उनके सुपुत्र मारवाड़ के स्वाभिमानी राव चन्द्रसेनजी राजगद्दी पर आसीन हुवे ! उनके सबसे विसिष्ठ सरदारों में चांदाजी थे ! उस समय बादशाह अकबर की तरफ से नागौर में नवाब हुसैन कुल्ली खां की सूबेदारी थी उसनें जोधपुर जीतने के लिए दो बार हमले किये पर सामनें मोर्चे पर चांदाजी ने उसकी दाल नही गलने दी और अंत में उसनें सोचा की जब तक ये चांदा जीवित है जोधपुर कभी नही जीता जा सकता तब उसनें राव चंद्रसेन जी को संधि के लिए निवेदन किया ! राव चंद्रसेन जी ने अपनें परम वफादार राव चांदाजी को नागौर भेजा,वो अपने चार सपूत बेटों को लेकर नागौर पहुँचे ! चांदाजी उसके छल-कपट को नही समझ सके क्यों की नवाब नें एक मस्त हाथी को शराब पिलाकर गढ़ के मुख्य द्वार पर छुड़वा दिया और एक बुर्ज से लकड़ी की सीढ़ियाँ निचे लटका दी और चांदाजी को उन सीढ़ियों से ऊपर आ जानें को कहा,जैसे ही वो सीढ़ियों से ऊपर तक आये नवाब नें तलवार का वार उनकी गर्दन पर कर दिया परतुं अनेक युधौं के दावपेच में दक्ष राव चान्दाजी नें अपनी कटार के अनगिनत वार से नवाब का भी काम तमाम कर दिया ! अपनीं जिंदगी का अंतिम युद्ध राव चांदाजी नें चार सपूत पुत्र सांवलदास,विसनदास, नरहरदास,केसवदास के साथ वीर गति प्राप्त करके जीता !
वीरवर चांदाजी के साथ उनका पोलपात और मर्जीदान चारण चूण्डा जी दधवाड़िया भी वीरगति को प्राप्त हुवे !
वीरवर चांदाजी इसी मेड़तिया वंस में जन्में पर वो स्वतंत्र
प्रवर्ति के स्वाभिमानी सपूत थे जिन्होंने अपनी अलग पहचान कायम करी इसलिए उनकी संतति मेड़तियों से अलग ""चाँन्दावत"" कहलाये ! राजपुताना के सभी निर्णायक युधों में इस वंस के वीरों नें अपना बलिदान देकर जो परम्परा कायम की जो खानवा और हल्दीघाटी से सुरु होकर द्वितीय विश्व युद्ध तक रही है ! इनकी सन्तति नें मारवाड़ मेवाड़ के अनेक युद्ध अभियानों में अपना परचम
फहराया और इसके बदले में उनको कई बड़ी बड़ी जागीरें मिली जिसमें मुख्य रूप से ये है--
बलुन्दा,कुड़की,सेवरिया,नोखा,नीमड़ी,छापरी,
देसवाल,ओलादन,गागुड़ा,लाई,मुगदड़ा,धनापो,दुदड़ास, आकोदिया,दधवाड़ा,भावला,रोहिणा,रियां शामदास,रेंवत
बाकलियावास,सेनणी तथा टालनपुर,खाखड़की,पिपाड़ा, तिगरा,तिबड़ी,गोटन,डाबला,मेड़ता रोड़,बस्सी, बांकावास रूपपुरा,मिण्डकिया,कोसाणा,मेरासिया अलावा मेवाड़ में खामोर और
अजमेरा में बस्सी,कडेल,मजेवाला,एहड़ा,बेड़ा,ढाल,
शोल,मायला इत्यादि ठिकानों में चांदावतों की जागीर और
भोम रही है ।
मारवाड़ के कई प्रख्यात चारण कवियों नें वीरवर चांदाजी की वीरता पर मुग्ध होकर अनेक दोहे,छन्दः,गीत,छपय और श्लोके लिखकर उनको श्रदाजंलि अर्पित की !
राव चांदाजी के वीरता के गुणों को उजागर करते हुवे राजस्थानी साहित्य का सबसे अनमोल ग्रन्थ "चांदाजी री वैली" लिखी गई ! डिंगल के इस महाग्रन्थ के रचयिता माधवदास जी ने "चांदाजी री वैली" लिखकर चांदावतों
पर बहुत बड़ा अहसान किया है ! इस तरह की वेेलियाँ सिर्फ 3-4 ही लिखी गई है,जिसमें एक महान भक्त और अकबर के दरबारी महाराज पृथ्वीराज राठौड़ बीकानेर द्वारा लिखित है ! "श्री कृष्ण रूखमणी री वैली" है जो पांचवा वैद के समकक्ष माना गया है ! चाँन्दाजी री वैली ग्रन्थ राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी से प्रकासित हुआ है जो प्रत्येक चांदावत को अपनें घर में रखना चाहिए क्यों की उनके लिए ये ग्रन्थ रामायण या श्री मदभगवतगीता से कम नही है ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें