चुरू के किले का इतिहास 1739
भारत के राजस्थान राज्य का चूरू में स्थित दुर्ग जहा के शासक ने शत्रुओं पर चांदी के गोले दाग कर इतिहास में अलग ही छाप छोड़ दी।चूरू दुर्ग : विभिन्न स्रोतों से ज्ञात होता है कि किले का निर्माण 1739 में हुआ। कुछ का मानना है कि इसका निर्माण ठाकुर कुशल सिंह ने 1694 ईस्वी में करवाया था। ठाकुर कुशल सिंह के वंशज ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इससे अंग्रेजी हुकूमत भड़क उठी फिर बीकानेर से सेना बुलाई और किले को घेर लिया।
किले कि सुरक्षा केसे की ठाकुर कुशल सिंह ने ?दोनों तरफ से तोपों ने जमकर गोले बरसाए। एक समय ऐसा आया गया जब किले में गोले खत्म हो गया। यह सब देखते हुये लुहारों ने मोर्चा संभाला। लोहे को गलाकर गोले बनाने शुरू कर दिए लेकिन, वे भी समाप्त हो गए। और गोले बनाने के लिए सामग्री नहीं बची। तब चूरू के सेठ—साहूकारों ने की रक्षा के लिए अपनी तिजोरियां खोल दी और चांदी लाकर ठाकुर के समर्पित कर दी। लुहारों और सुनारों ने मिलकर चांदी के गोले बनाए फिर इनमें बारूद भरा गया था। तापों ने जैसे ही चांदी के गोले उगलना शुरू किया तो अंग्रेज सेना दंग रहे गई। उसने घेराबन्दी खत्म कर दी।दूसरा यह भी उल्लेख मिलता है कि ठाकुर शिवजी सिंह चूरू के शासक थे। उनका विवाद पड़ोसी रिसायत बीकानेर से अक्सर रहता था। बात अगस्त 1814 की है किसी बात को लेकर बीकानेर और चूरू रियासत में विवाद बढ़ गया। बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने चूरू पर चढ़ाई कर दी। ठाकुर शिवजी सिंह ने दुश्मन से जमकर लौहा लिया लेकिन, कुछ दिनों बाद इनके पास गोल और बारूद खत्म हो गए। जिससे ठाकुर शिवजी सिंह निराश हो गए। लेकिन जनता और व्यापारियों ने इन्हे आर्थिक मदद देते हुए अपने राज्य की रक्षा के लिए अपना सोना और चांदी दे दिया। जिसके बाद शिव सिंह ने दुश्मनो को मुँहतोड़ जबाब देते हुए चांदी के गोलों से दुश्मन पर हमला किया जिससे दुश्मन भाग खड़े हुए।
इस संबंध में यहां लोकोक्ति भी प्रचलित है
धोर ऊपर नींमड़ी धोरे ऊपर तोप।
चांदी गोला चालतां, गोरां नाख्या टोप।।
वीको-फीको पड़त्र गयो, बण गोरां हमगीर।
चांदी गोला चालिया, चूरू री तासीर।।
चुरू चमक चांदी हुयो, चांदी गोळा दाग।
दाग चुरू लाग्यो नहीं, गयो बिकाणो भाग।।
अर्थात चुरू का गौरव भाल चांदी की तरह चमक कर दुग्ध धवल हो गया। क्योंकि यहाँ पर दुश्मन पर चांदी के गोले दागे गए। इसलिए चुरू ठिकाने पर कोई दाग नहीं लग सका। और अंततः बीकानेर और अंग्रेज सेना को भागना पड़ा।
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