झाला मानसिंह का इतिहास
झाला मान की जयंती 18 जून 1576(हल्दीघाटी शौर्य दिवस ) .
के राजराणा झाला मन्ना का इतिहास की लगातार 7 पीढ़ियों ने 1527 से 1576 के काल खण्ड में मेवाड़ व राजपूताना पर विदेशी हमलावरों से युद्ध करते हुए मैदान में प्राण न्यौछावर कर दिये थे।
झाला मन्ना का परिवार हल्वद काठियावड गुजरात से राज्य छोड़ कर महाराणा रायमल के शासनकाल मे मेवाड़ आ गया था। मेवाड़ के कई गावों को झालाओं ने अपने अधिकार में कर मेवाड़ का आधिपथ्य स्थापित किया। तब 7 वर्ष तक बड़ीसादड़ी का ठिकाना राजराणा अज्जा को जागीर के रूप में दिया। अज्जा से लेकर लगातार सात पीढ़ीयां मेवाड़ के लिय सर्वस्व समर्पण करती रही। मेवाड़ के भविष्य को प्रताप के हाथों में सुरक्षित समझकर उनके साथ सलाहकार के रूप में रहकर झाला मन्ना प्रताप के हर महत्वपूर्ण कार्य में साथ रहे तथा साथ में संघर्ष किया। 1572 से 1576 तक प्रताप के सैन्य संगठन में अग्रणी भूमिका निभाकर झालामन्ना ने नाकाबन्दी करने में कामयाबी हासिल की।उन्हें हर समय युद्ध की अपरिहार्यता का आभास हो जाता था और सदैव आगे होकर मैदान में डट जाते थे। 18 जून 1576 को हल्दी घाटी के मैदान में मुगल सेना के सामने जब महाराणा प्रताप घिर गये, तब झालामन्ना उस समय उनके साथ ही थे। परिस्थिति को समझते उन्हें एक पल भी नहीं लगा और उन्होनें तुरन्त महाराणा प्रताप से राजचिन्ह और ध्वज अपने हाथों में ले लिया और महाराणा प्रताप को सुरक्षित युद्व क्षेत्र से बाहर निकाल स्वयं दुश्मनों से भिड़ गये और पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुये। इस बलिदान स्वरूप झाला मन्ना की जागिर बड़ीसादड़ी को राज्य चिह्न धारण करने व मेवाड़ के महाराणा के बराबर प्रतिष्ठापित होने का अधिकार मिला। ऐसे वीर झाला मन्ना के बलिदान से आने वाली पीढियां परिचित एवं प्रेरणा ग्रहण करें |
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दीधाफिर देसी घणां, मालिक साथै प्रांण।
चेटक पग दीधी जठै, सिर दीधौ मकवांण।
राणगया गिरि ऊपरां, चेटक मोटै ठांण ।
मुगल गया कबरां महीं, सुरग गया मकवांण।।
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