कुँवर वीर पृथ्वीसिंह का इतिहास -जोधपुर के शासक थे।
गौरवगाथा कुंवर पृथ्वी सिंह मारवाड़ ,एक ऐसा वीर बालक के इतिहास बारे में हम अवगत कराएगे जिसकी बहादुरी से दिल्ली के बादशाह औरंगजब के भी होस उड़ गई । वह है राजा जशंवत सिंह के लाडले वीर पुत्र पृथ्वीसिंह
एक बार एक शिकारी जंगल से शेर पकड कर लाता हैं कुछ औरंगजेब के मन्त्री उस शिकारी को बादशाह के दरबार में शेर को लाने को कहता हैं। वह शिकारी शेर को लोहे के पिंजरे में बंद कर लाता है ओरंगजेब अपने दरबार में पिंजरे में बंद भयानक शेर को देख इतराते हुए बोला “इससे खतरनाक शेर नही हो सकता है” ! ओरंगजेब के दरबार में बैठे उसके गुलाम मन्त्री ने भी उसकी हामी भरते बोले । हाँ हुजूर ऐसा शेर हमारे राज्यो में कही भी नही है यह बात जोधपुर के महाराजा जशवंत सिंह को ना बजुर थी
महाराजा जशवंत सिंह ने ओरंगजेब की इस बात से असहमति जताते हुए कहा कि -
“इससे भी अधिक शक्तिशाली शेर तो हमारे पास है।" महाराजा जशवंत सिंह की बात को सुनकर मुग़ल बादशाह ओरंगजेब बड़ा क्रोधित हो उठा।उसने जशवंत सिंह से कहा कि यदि तुम्हारे पास इस शेर से अधिक शक्तिशाली शेर है, तो अपने शेर का मुकाबला हमारे शेर से करवाओ, लेकिन तुम्हारा शेर यदि हार गया तो तुम्हारा सार काट दिया जाएगा।
महाराजा जशवंत सिंह ने ओरंगजेब की चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया।अगले दिन किले में शेरों की लड़ाई का आयोजन किया गया, जिसे देखने के लिए भारी भीड़ इकट्ठी हुई। ओरंगजेब अपने स्थान पर एवं महाराजा जशवंत सिंह अपने बारह वर्षीय पुत्र बालक पृथ्वी सिंह के साथ अपना आसन ग्रहण किये हुए थे ।ओरंगजेब ने जशवंत सिंह से प्रश्न किया “कहाँ है तुम्हारा शेर ?”
जशवंत सिंह ने ओरंगजेब से कहा-
“तुम निश्चिन्त रहो मेरा शेर यहीं मौजूद है, तुम लड़ाई शुरू करवाओ ।"
ओरंगजेब ने शेरों की लड़ाई शुरू की जाने की घोषणा की। ओरंगजेब के शेर को लोहे के पिंजरे में छोड़ दिया गया ! अब बारी थी महाराजा जशवंत सिंह के शेर की ! महाराजा जशवंत सिंह ने अपने बारह वर्षीय पुत्र बालक पृथ्वी सिंह को आदेश दिया कि आप शेर के पिंजरे में जाओ और हमारी और से ओरंगजेब के शेर से युद्ध करो। यह सब देख वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए ।
अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करते हुए शेर के पिंजरे में घुस गए ।
शेर ने बालक पृथ्वी सिंह की तरफ देखा उस तेजस्वी बालक की आँखो में देखते ही वह शेर पूंछ दवाकर अचानक पीछे की ओर हट गया।
यह देख किले में उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए। तब मुग़ल सैनिकों ने शेर को भाले से उकसाया, तब कहीं वह शेर बालक पृथ्वी सिंह की और लपका। शेर को अपनी और आते देख बालक पृथ्वी सिंह पहले तो एक और हट गए बाद में उन्होंने अपनी तलवार म्यान में से निकाल ली, अपने पुत्र को तलवार निकालते देख महाराजा जशवंत सिंह जोर से बोले हैं
“बेटा तू ये क्या कर रहा है , शेर के पास तलवार तो है नही फिर क्या तलवार चलायेगा, ये तो धर्म युद्ध नही है !”
पृथ्वी सिंह का युद्ध
पिता की बात सुनकर बालक पृथ्वी सिंह ने तलवार फेक दी और वह शेर पर टूट पड़े , काफी संघर्ष के बाद उस वीर बालक पृथ्वी सिंह ने शेर का जबडा अपने हाथो से फाड दिया, और फिर उसके शरीर के टुकडे टुकडे कर के फेंक दिये।
सभी लोग वीर बालक पृथ्वीसिंह की जय जय कार करने लगे, शेर के खून से सना हुआ जब बालक पृथ्वी सिंह बाहर निकले तो राजा जशवंत सिंह जी ने दौडकर अपने पुत्र को छाती से लगा लिया।
(कहा जाता हे की उस दुष्ट और कपटी मुग़ल ने बालक पृथ्वी सिंह को उपहार स्वरूप् वस्त्र दिए जिनमे जहर लगा हुआ था,
उन्हें पहने के बाद बालक पृथ्वीसिंह की मृत्यु हो गयी थी)
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