मारवाडी की 'पाग' पागडियाँ
राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) में पुरातन काल से 'सवा सेर सूत' सिर पर बांधने का रिवाज एक परम्परा के रुप में आज दिन तक प्रचलित रहा है। पाग व पगड़ी मनुष्य की पहचान कराती है कि वह किस जाति, धर्म, सम्प्रदाय, परगना - राजघराणा व आर्थिक स्तर का है। उसके घर की कुशलता का सन्देश भी पगड़ी का रंग देती है।
मारवाड़ के राजपूतों में तो पाग पगड़ी का सामाजिक रिवाज आदि काल से प्रचलित रहा है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में 12 कोस पर बोली बदलती है, उसी प्रकार 12 कोस पर साफे के बांधने के पेच में फरक भी आता है। प्रत्येक परगने में विभिन्न जातियों के पाग-पगड़ियों के रंगों में, बांधने के ढंग में एवं पगड़ी के कपड़े में विभिन्नता इनमे राजपूताना पगड़ी सबसे भव्य है।
राजस्थान में पगड़ी के बांधने के ढंग, पेच एवं पगड़ी की कसावट देख कर बता देते हैं कि वह व्यक्ति कैसा है ? अर्थात् पाग-पगड़ी मनुष्य की शिष्टता, चातुर्य व विवेकशीलता की परिचायक होती है।
राजपूताना में पगड़ी सिर्फ खूबसूरत एवं ओपमा बढ़ाने को नहीं बांधते हैं बल्कि पगड़ी के साथ मान, प्रतिष्ठा, मर्यादा और स्वाभिमान जुड़ा हुआ रहता है। पगड़ी का अपमान स्वयं का अपमान माना जाता है। पगड़ी की मान की रक्षा के कारण तो पुराने समय में कई बार तलवारें म्यान के बाहर हुई और खून के फव्वारों ने इस धरती को अनेकों बार सींचा है। पगड़ियों के कारण समझौते हुये, झगड़े संधि में बदले, टूटे रिश्ते बने तथा दुश्मन पाग बदल कर भाई बने तथा कई महत्वपूर्ण घटनायें होते-होते रुक गई।
"पाग' राजस्थानी का शब्द है
"पाग' राजस्थानी का शब्द है। इसका नाम बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है, क्योंकि यह सिर पर धारण की जाती है। प्राचीन काल में इसका मोल बहुत लगाया जाता था। पाग-पगड़ी असम्भव को सम्भव बनाती है।
बाजार में व्यापार के लिये दुकान चाहिये तो आप पगड़ी देकर मन-माफिक स्थान पर दुकान ले सकते हो। अब पगड़ी का स्थान धन ने ले लिया है, वरना पुराने जमाने में पगड़ी अमानत के रुप में बहुत स्थान रखती थी।
आप विपत्ति में बलहीन एवं बन्धुविहीन हों तो कोई भी भीम या अर्जुन से पाग-बदल भाई बन जाइये। फिर मजाल है कि कोई आपकी तरफ आंख भी उठा सके।
अगर आपसे कोई समर्थ नाराज है तो आप तुरन्त उनके चरण कमलों में पाग उतार के रख दीजिये, बस देखते ही देखते उनका मन पसीज जायेगा।
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राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) में पुरातन काल से 'सवा सेर सूत' सिर पर बांधने का रिवाज एक परम्परा के रुप में आज दिन तक प्रचलित रहा है। पाग व पगड़ी मनुष्य की पहचान कराती है कि वह किस जाति, धर्म, सम्प्रदाय, परगना - राजघराणा व आर्थिक स्तर का है। उसके घर की कुशलता का सन्देश भी पगड़ी का रंग देती है।
मारवाड़ के राजपूतों में तो पाग पगड़ी का सामाजिक रिवाज आदि काल से प्रचलित रहा है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में 12 कोस पर बोली बदलती है, उसी प्रकार 12 कोस पर साफे के बांधने के पेच में फरक भी आता है। प्रत्येक परगने में विभिन्न जातियों के पाग-पगड़ियों के रंगों में, बांधने के ढंग में एवं पगड़ी के कपड़े में विभिन्नता इनमे राजपूताना पगड़ी सबसे भव्य है।
राजस्थान में पगड़ी के बांधने के ढंग, पेच एवं पगड़ी की कसावट देख कर बता देते हैं कि वह व्यक्ति कैसा है ? अर्थात् पाग-पगड़ी मनुष्य की शिष्टता, चातुर्य व विवेकशीलता की परिचायक होती है।
राजपूताना में पगड़ी सिर्फ खूबसूरत एवं ओपमा बढ़ाने को नहीं बांधते हैं बल्कि पगड़ी के साथ मान, प्रतिष्ठा, मर्यादा और स्वाभिमान जुड़ा हुआ रहता है। पगड़ी का अपमान स्वयं का अपमान माना जाता है। पगड़ी की मान की रक्षा के कारण तो पुराने समय में कई बार तलवारें म्यान के बाहर हुई और खून के फव्वारों ने इस धरती को अनेकों बार सींचा है। पगड़ियों के कारण समझौते हुये, झगड़े संधि में बदले, टूटे रिश्ते बने तथा दुश्मन पाग बदल कर भाई बने तथा कई महत्वपूर्ण घटनायें होते-होते रुक गई।
"पाग' राजस्थानी का शब्द है
"पाग' राजस्थानी का शब्द है। इसका नाम बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है, क्योंकि यह सिर पर धारण की जाती है। प्राचीन काल में इसका मोल बहुत लगाया जाता था। पाग-पगड़ी असम्भव को सम्भव बनाती है।
बाजार में व्यापार के लिये दुकान चाहिये तो आप पगड़ी देकर मन-माफिक स्थान पर दुकान ले सकते हो। अब पगड़ी का स्थान धन ने ले लिया है, वरना पुराने जमाने में पगड़ी अमानत के रुप में बहुत स्थान रखती थी।
आप विपत्ति में बलहीन एवं बन्धुविहीन हों तो कोई भी भीम या अर्जुन से पाग-बदल भाई बन जाइये। फिर मजाल है कि कोई आपकी तरफ आंख भी उठा सके।
अगर आपसे कोई समर्थ नाराज है तो आप तुरन्त उनके चरण कमलों में पाग उतार के रख दीजिये, बस देखते ही देखते उनका मन पसीज जायेगा।
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