सवाई जयसिंह की वेधशाला
जयपुर के इतिहास के पन्नों से जिस नगर-निर्माता, वैज्ञानिक-योद्धा और कूटनीतिज्ञ का नाम कभी धुंधला नहीं पड़ने वाला- ऐसे सवाई जयसिंह को भला कौन जयपुरवासी भूल सकता है? उनका उतार-चढ़ाव से भरा जीवन-चरित कई दृष्टियों से अनूठा है।
एक असाधारण वैज्ञानिक-राजा की प्रतिमा- जिसके आरंभिक जीवन में झंझावातों, युद्धों और राजनीतिक उठापटक के अनगिनत दिन दर्ज हैं। पर ये जयसिंह ही थे जिन्होंने भयानक समयों का सामना करते हुए भी अपने भीतर गहरे विद्यानुराग, खगोल-विज्ञान के तलस्पर्शी वैज्ञानिक अध्ययन और शोध के प्रति अपने अनुराग की लौ को कभी मद्धम पड़ने नहीं दिया। ताज्जुब नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे लेखक खुद भी उनका उल्लेख अपनी पुस्तक 'भारत एक खोज' में सम्मानपूर्वक करते हैं।
जयपुर नगर बसाया था सवाई जयसिंह ने
सवाई जयसिंह (3 नवम्बर,1688 - 21 सित.1743) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के राज्य आमेर के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। आमेर से दक्षिण में छह मील दूर सन् 1727 में एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय इतिहास में अमर है। सवाई जयसिंह का संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं व्यावहारिक प्रयोगों और परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिंह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे।जयसिंह की मान्यता थी कि अब तक यूरोप एशियाई देशों में बारीकी से गणित और ज्योतिष पर अध्ययन नहीं होने पाया है इसी अभिलाषा से उन्होंने बड़ी-बड़ी वेधशालाओं को बनवाया और बड़े-बड़े यंत्रों को बनवाकर नक्षत्र आदि की गति को सही तौर से जानने के साधन उपलब्ध किए इन वेधशालाओ में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है जो आज भी सटीक कार्य करती है। इसका निर्माण जयसिंह ने 1728 ई. में करवाया था। इसे जंतर मंतर नाम दिया गया। यहां जंतर से तात्पर्य उपकरण तथा मंत्र से तात्पर्य गणना से है। इस जंतर मंतर में संसार की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी है। जिसे 2010 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
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