वीर जदुनाथसिंह राठौर का इतिहास 1948
नौशेरा सेक्टर का यह क्षेत्र, औऱ कड़कड़ाती ठंड 6 फरवरी 1948 का दिन। कोहरे के कारण कुछ साफ साफ नही दिख रहा था मगर राजपुताना 1 के 10 जवान वहां अपनी खंदकों में जमे थे।अचानक उन्हें कुछ आकृतियां दिखी और धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ने लगी। ये पाकिस्तानी सिपाही औऱ पठान थे जो हजारो की तादाद में आगे बढ़ रहे थे। असलहों औऱ हथियारों से लैस इस संख्याबल को देखकर जदुनाथ सिंह की भी पेशानी पर पसीना आने लगा था। उसके पास दो ही रास्ते थे "लड़ो औऱ मरो" या "आत्मसमर्पण"!
लेकिन शौर्य गाथाएं कायरों की नही लिखी जाती। यदुनाथ सिंह ने दुश्मन के नजदीक आने का इंतजार किया। जैसे ही दुश्मन की पहली पंक्ति उनके करीब तक पहुंची यदुनाथ ने फायर का आदेश दिया, तड़ तड़ तड़ा तड़ मशीनगनों से गोलियां दुश्मन से मुलाकात करने लगी।
एक बार तो दुश्मन में भगदड़ ही मच गई पर अगले ही क्षण वे भी गोलियां बरसाने लगे, टिड्डी दल जैसे आगे बढ़ता है ऐसे वे लोग आने लगे, जदुनाथ के साथियों ने हथगोले फेंकने शुरू किए, पर उनमे से कुछ बिल्कुल करीब आ गए। अब केवल हाथापाई की लड़ाई बचती थी, राजपुताना का वीरता का इतिहास जग जाहिर है संगीन घोंप घोंप कर दुश्मन को 72 हूरों तक पहुंचाया गया। दुश्मन को भारी क्षति हुई और वे कुछ देर के लिए भाग खड़े हुए पर 4 सिपाही बुरी तरह घायल हो गए थे।
अभी वे सम्भले भी नही थे कि दूसरा जोरदार हमला हुआ और हवलदार ने मोर्टार से हमला बोल दिया, इतनी नजदीकी लड़ाई में मोर्टार का प्रयोग खुद के लिए भी जानलेवा था मगर अंततः जीत हुई। अब हालत ये थी कि जदुनाथ के सब सिपाही घायल थे लेकिन फिर भी वे जैसे तैसे बंदूक थामे थे। इस समय दुश्मन चौकी तक पहुंच गया ।
जदुनाथ अभी भी लगातार लड़ रहे थे और इस हमले में भी उन्होंने चौकी को बचा लिया था, मगर तीसरे हमले तक यदुनाथ के सारे साथी वीरगति को प्राप्त हुए और बच गए अकेले यदुनाथ जो छह गोलियां खाकर भी जिंदा थे। खून से लथपथ, लंगड़ाते हुए बंदूक लेकर वे दुश्मन पर टूट पड़े। दुश्मन पहली बार किसी एक आदमी से इतना खौफजदा हुआ कि एक बार तो सब भाग ही खड़े हुए पर तभी एक गोली यदुनाथ के सीने में लगी। परन्तु वो वीर तब भी नही रुका औऱ जैकेट से निकाल कर हथगोले फेंक कर फिर दूसरी बंदूक उठाकर गोलियां बरसने लगा, दुश्मन एक के बाद धड़ाधड़ गिरने लगे तभी एक गोली आई और जदुनाथ के सर में लगी।
जदुनाथ बंदूक थामे घुटनो के बल बैठ गए, आंखे खुली रही, प्राण छूट गए, मगर ऐसा पराक्रम देखकर दुश्मन भाग खड़ा हुआ। बाद में हिसाब लगाया गया 260 लाशें दुश्मन की वहां पड़ी हुई थी।
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