सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

Dogara rajputo ka parichye-डोगरा राजपूतों का परिचय

Dogara rajputo ka parichye ~ जम्मू कश्मीर के डोगरा राजपूतों का संम्बंध आमेर के कच्छवाहा कुशवाहा राजवंश से रहा है डोगरा राजवंश की स्थापना 1822 में महाराजा गुलाब सिंह ने कि थी !  ~ कौन थे महाराजा हरिसिंह डोगरा  ● जम्मू और कश्मीर के अंतिम शासक 1925 में महाराजा हरि सिंह डोगरा थे। वह राजा अमर सिंह के इकलौते पुत्र थे। डोगरों ने एकजुट जम्मू कश्मीर बनाने के लिए अपना खून और पसीना बहाया जिसमें लद्दाख, बाल्टिस्तान, गिलगित, सकार्दु शामिल हैं। वह अंतिम डोगरा राजा था, निस्संदेह घाटी में सबसे अधिक ज्ञात और याद किया जाने वाला आंकड़ा है, इस तथ्य के कारण कि उसके कार्यों को कश्मीर के अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ा गया था। बोराज का युध्द  ● प्रारंभिक जीवन और उसका शासन 23 सितंबर 1895 को जम्मू में जन्मे सिंह राजा अमर सिंह जम्वाल के पुत्र थे जिनके भाई प्रताप सिंह राज्य के राजा थे। जब हरि सिंह के पिता की मृत्यु 1909 में हुई, तो अंग्रेजों ने उनकी पढ़ाई में गहरी दिलचस्पी ली। राजस्थान के अजमेर में मेयो कॉलेज में अपनी बुनियादी शिक्षा के बाद, सिंह सैन्य प्रशिक्षण के लिए देहरादून में ब्रिटिश-संचालित इंपीरियल

बेटी मेरी लाज रख लो-dewasi samaj

यह कहानी है एक लाचार बाप की जो अपनी औलाद के पैरो में पगड़ी रख कर अपनी लाज (इंजत) की भीख मांगता है अपनी औलाद के आगे हार जाता है लेकिन उनकी बेटी एक नही चुनती है और वह बेटी कहती है की मेंरे यह माँ-बाप नही है बेटी इतनी प्यार में पागल हो जाती हैं कि सामने माँ -बाप होते हुए भी इंकार कर देती हुँ बेटी मेरी लाज रख लो,पगड़ी रखु तेरे पहेरो मे,जग हसे मुह दिखाई नहीं रहुगा मे,  हजार गुना माफ करदु आज,पगड़ी की लाज रखले आज  उम्र गुजर जाती है आशियाना बनाते बनाते, फिर एक तूफानआता है और सपनों के घरौंदे उड़ा ले जाता है।जैसे तैसे करके बाप बच्चो को पालता है , अपनी औकात से बढ़कर उनकी शिक्षा के लिए दर दर भटकर पैसों का जुगाड करता है कि एक दिन मेरी संतान मेरा मस्तक इस समाज में गर्व से ऊंचा कर देगी लेकिन ये तो उसका हवाई स्वप्न था? बच्चे थोड़े पढ़कर होशियार होते ही , न जाने प्रेम के कोनसे मायाजाल में पड़ते है कि परिवार की लाज और सम्मान मानी जाने वाली " पगड़ी " को अपने ही पैरो तले कुचल देते है । ऐसा ही वाकया इस वीडियो में है। मेने जब इसे देखा , तो एकाएक मेरी आंखों से अनायास ही आंसू छलक आए । बेटी एक लडके स

Boraj ka yuddh/बोराज का युद्ध -1843

 बोराज का युद्ध boraj ka yuddh ( संवत् 1843 )झुंझार जी : श्री जवान सिंह जी खंगारोत ठि. सीतारामपुरा ( देवली मय शिलालेख - बोराज गढ़ ) बोराज गढ़ ( जयपुर ) खंगारोत ( कच्छवाहा ) सरदारों के शौर्य का प्रतीक है । यह गढ़ ऐतिहासिक समयकाल में अनेकों युद्धों के भीषण प्रहारों का साक्षी रहा है। ऐसा ही एक युद्ध संवत् 1843 को हुआ जब चंद संख्या में जवान सिंह जी खंगारोत के नेतृत्व में बोराज की प्रजा व गढ़ की सुरक्षा हेतु तैनात खंगारोत सरदारों ने महादजी सिन्धिया के सेनानायक रायजी पटेल के नेतृत्व में 5000 मराठा सैनिकों के आक्रमण को अपनी वीरता शौर्य के बुते विफल कर लुटेरे मराठाओं को दांतों तले चने चबवा दिए।  लाल किला का इतिहास   👈Click here  यह युद्ध जवान सिंह जी खंगारोत एवं उनके 17 खंगारोत भाइयों ने 5000 मराठा सैनिकों के विरुद्ध लड़ा जिसमे विरोधियों को औंधे मुंह की खानी पड़ी , इसके बाद मराठा सैनिक भाग खड़े हुए , लेकिन जवान सिंह जी और उनके साथी गण युद्ध में खेत रहे ।  इस युद्ध की स्मृति में बोराज गढ़ के बाहर एक देवली स्थापित है जिसमें "बोराज गढ़" पर माघ बदि 14 वि. सं. 1843 को सेना के आक्रमण को

उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज का सम्पूर्ण इतिहास जाने

उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज का सम्पूर्ण इतिहास जाने उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज का" सम्पूर्ण इतिहास जाने- कुंवर पृथ्वी सिंह जिन्हें उड़ना पृथ्वीराज के नाम से भी इतिहास में जाना जाता है, मेवाड़ के महाराणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र थे व इतिहास प्रसिद्ध महाराणा सांगा के बड़े भाई। सांगा व कुंवर पृथ्वीराज दोनों झाला राजवंश में जन्मी राणा रायमल की रानी रतनकंवर के गर्भ से जन्में थे। कुंवर पृथ्वीराज अपने अदम्य साहस, अप्रत्याशित वीरता, दृढ निश्चय, युद्धार्थ तीव्र प्रतिक्रिया व अपने अदम्य शौर्य के लिए दूर दूर तक जाने जाते थे| इतिहासकारों के अनुसार अपने इन गुणों से “पृथ्वीराज को लोग देवता समझते थे|” पृथ्वीराज एक ऐसे राजकुमार थे जिन्होंने अपने स्वयं के बलबूते सैन्य दल व उसके खर्च के लिए स्वतंत्र रूप से आर्थिक व्यवस्था कर मेवाड़ के उन कई उदण्ड विरोधियों को दंड दिया जो मेवाड़ राज्य की परवाह नहीं करते थे| इतिहासकारों के अनुसार यदि पृथ्वीराज की जहर देकर हत्या नहीं की गई होती और वे मेवाड़ की गद्दी पर बैठते तो देश का इतिहास कुछ और ही होता| यदि राणा रायमल का यह ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज जीवित होता और सांगा के स्थान

Khanda vivah parmpara kiya hai jane ^ "खांडा विवाह परम्परा " क्या है जाने

  Khanda vivah parmpara खांडा विवाह परपरा | राजपूत योद्धाओं को अक्सर अनवरत चलने वाले युद्धों के कारण अपनी शादी के लिए जाने तक का समय नहीं मिल पाता था ऐसे कई अवसर आते थे कि योद्धा की शादी तय हो जाती थी और ठीक शादी से पहले उसे किसी युद्ध में चले जाना पड़ता था ऐसी परिस्थितियों में उस काल में राजपूत समुदाय में खांडा विवाह परम्परा की शुरुआत हुई| राजस्थान के राजपूत शासन काल में राजपूत हमेशा युद्धरत रहते थे कभी बाहरी आक्रमण तो कभी अपना अपना राज्य बढ़ाने के लिए राजाओं की आपसी लड़ाईयां|इन लड़ाइयों के चलते राजपूत योद्धाओं को कभी कभी अपनी शादी तक के लिए समय तक नहीं मिल पाता था|कई बार ऐसे भी अवसर आते थे कि शादी की रस्म को बीच में ही छोड़कर राजपूत योद्धाओं को युद्ध में जाना पड़ता था| Mewad adhipati rajsinghji ka itihas . . राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबूजी राठौड अपनी शादी में फेरों की रस्म पूरी ही नहीं कर पाए थे कि एक वृद्धा के पशुधन को लुटेरों से बचाने के लिए फेरों की रस्म बीच में ही छोड़ उन्हें रण में जाना पड़ा और वे उस वृद्धा के पशुधन की रक्षा करते हुए युद्धभूमि में शहीद हो गए| इसी तरह मेवाड़ के सल

Mewad adhipati maharaja rajsingh pratham- मेवाड़ अधिपति महाराणा राज सिंह जी प्रथम

Mewad adhipati maharaja rajsingh pratham मेवाड़ अधिपति महाराणा राज सिंह जी प्रथम की 391 वीं जयंती पर कोटिश नमन ! शाहजहाँ के अंत समय दिल्ली मे सत्ता संघर्ष के समय ''महाराणा राजसिंह'' ने औरंगजेब की कोई सहायता नहीं की जबकि औरंगजेब ने महाराणा से सहायता मांगी थी, उसी समय महाराणा ने रामपुरा क्षेत्र को अपने अधिकार मे ले लिया। औरंगजेब मुगल सुल्तान बन गया परंतु राजसिंह के कृत्य पर ध्यान नहीं दिया, जयपुर के ''राजा जयसिंह'' और जोधपुर के ''राजा जसवंत सिंह'' के देहावसान होने के पश्चात औरंगजेब निश्चिंत होकर हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया महाराणा राजसिंह ने इसका बिरोध किया। ये भी पढ़ें>> वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास औरंगजेब जोधपुर पर हमला के दौरान ''रूपगढ़'' रियासत की राजकुमारी का डोला उठवाने हेतु पाँच हज़ार की लस्कर लेकर भेजा उस राजकुमारी ने बुद्धिमत्ता पूर्वक महाराणा को याद किया, महाराणा ने एक बड़ी फौज लेकार उस राजकुमारी की रक्षा की औरंगजेब की सारी फौज मारी गयी, जोधपुर के अल्प बयस्क ''राजा अजीत सिंह'' को औरंगजेब गिरफ

Kachwaho ki nathawant khanp ke pravartak-कछवाहों की नाथावत खांप के प्रवर्तक

  Kachwaho ki nathawant khanp ke pravartak-कछवाहों की नाथावत खांप के प्रवर्तक : वीर शिरोमणि नाथा जी ( वि. सं. 1621 - 1640 ) नाथा जी का जन्म सं. 1582 में करौली के ठाकुर की पुत्री सत्यभामा जी  के उदर से हुआ। नाथा जी के पिता गोपाल जी ( राजा पृथ्वीराज जी के 6 या 7 वें पुत्र ) 1607 में चोमु के ठाकुर बने तथा इससे पूर्व देवास के बास के स्वामी थे। इनके निधन के बाद संवत 1621 में नाथा जी सामोद की जागीर ( यह आमेर राज्य की प्रसिद्ध 12 कोटडियों में से एक थी ) की गद्दी पर बैठे उस समय उनकी आयु 38 वर्ष की थी। ( चौमू भी इन्हीं के नियंत्रण में रही ) नाथा जी बड़े प्रभावशाली पुरुष थे। इश्वर ने भी उनका नाम अमर करने की विधान बनाए थे। संवत् 1607 के पौष बदी तेरस शनिवार को भगवान दास की धर्मपत्नी पवार जी के उदर से इतिहास प्रसिद्ध मान सिंह जी का जन्म हुआ इनके ग्रह देखकर ज्योतिषी ने बताया कि इनको 12 वर्ष एकांत में रखना चाहिए। तदनुसार राजा भारमल जी ने वर्तमान जयपुर से 50 किलोमीटर दूर मौजमाबाद में उनके रहने का प्रबंध किया और अकेले राजकुमार किसी प्रकार अप्रसन्न या विद्या व्यवहारदि से वंचित न रहे, यह सोचकर उनके पास