महाराणा संग्राम सिंह जी की लड़ाई maharana sangram Singh
राजपूताना की पावन धरा जिसे सूरवीरों की जन्मदात्री भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसी धरा के मेवाड़ अंचल के जिक्र बिना राजपूताना का बखान अधूरा सा है , जहा के अनगिनत सूरवीरों के बलिदान से यहां की मिट्टी रंगी है। राजस्थान के गौरव केंद्र मेवाड़ की मिट्टी के इन्हीं वीरों में एक नाम आज भी गूंजता है जिन्हे इतिहास में राणा सांगा जी के नाम से जाना गया जिन्होंने एक आंख , एक हाथ तथा एक पांव गंवाने से साथ कुल 80 घावों का वीर श्रृंगार अपनी देह पर सजाया और रक्त के अंतिम कतरे तक वह अपनी मातृभूमि के लिए शत्रुओं से लोहा लेते रहे ।
अपने पूरे जीवन काल में लगभग 100 युद्धों का नेतृत्व किया और सभी में विजय रहे। दिल्ली की लोदी सल्तनत को धूल चटा कर सांगा जी भारत का सम्राट बनने की और अग्रसर थे लेकिन तभी लोदी के गर्वनर के आमंत्रण पर बाबर का भारतीय सरजमीं पर प्रवेश होता है जिसे बयाना के युद्ध में स बुरी तरह से सिकस्ट खानी पड़ी।
मुग़ल जनरल मंसूर बरलास ने राजपूतों द्वारा मुगलों के कुचले जाने का वर्णन कुछ ऐसे किया -
राजपूतों में अदम्य साहस है। वे अज़राईल (मृत्यु) से परिचित हैं उन्हें इसका भय नहीं। हमारे सैनिकों के विपरीत, वे मैदान का कभी त्याग नहीं करते हैं। बयाना का युद्ध (जिसमे बाबर बुरी तरह पराजित हुआ) व खानवा का युद्ध पाति पेरवन परम्परा के तहत ही लड़ा गया।
यह एक राजपूत कालीन एक प्राचीन परम्परा जिसे राजपूताना में पुनजीर्वित करने का श्रेय राणा सांगा जी को दिया जाता है। राजपूताने के वे पहले शासक थे जिन्होंने अनेक राज्यों के राजपूत राजाओं को विदेशी जाति विरूद्ध संगठित कर उन्हें एक छत्र के नीचे लाये ।
बयाना युद्ध में विजय पश्चात सभी राजाओं द्वारा महाराणा सांगा को " हिंदूपत ( हिंदूपात ) की पदवी से विभूषित किया गया। जिसका तात्पर्य हिंदू सम्राज्य के राजाओं का महाराजा है।
इसी युद्ध के बाद सांगा जी व बाबर के मध्य खांनवा का भीषण युद्ध हुआ। तोपो की नई तकनीक और संख्याबल में कमी के बावजूद युद्ध सांगा जी पक्ष में जा रहा था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था और एक तीर के तीव्र प्रहार से वे मूर्छित हो गए। आमेर नरेश पृथ्वीराज जी ने इन्हे रणभूमि से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जहा पर उपचारत उनका देहांत हो गया।
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