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मेवाड़ के सिक्के |इतिहास |मेवाड़ रियासत

 मेवाड़ के सिक्के 

मेवाड़ रियासत में चलने वाले चांदी के सिक्के द्रम्म, रूपक, तांबे के सिक्के कर्षापण कहलाता हैं इतिहासकार वेब के अनुसार प्रारम्भ में ये इंडो सेसेनियन ' शैली के बने थे 

शिवि जनपद की राजधानी नगरी मध्यमीका से चांदी तांबे की मुद्रा मिली है जो आधुनिक ढिगला के ही अनुरूप थी

 मेवाड़ क्षेत्रों में हूणों द्वारा प्रचलित चांदी और तांबे की गधियां मुद्रा भी प्राप्त हुई हैं मेवाड़ के गुहिल के सिक्के जो लगभग 2000 है तथा चांदी के बने हुए हैं 

आगरा के संग्रह से प्राप्त हुए हैं महाराजा कुंभा के द्वारा चलाए गए चौकोर एव गोल चांदी एवं तांबे के सिक्के मिले हैं 

महाराजा संग्राम सिंह द्वारा चलाए गए तांबे के सिक्के पर स्वस्तिक तथा त्रिशूल अंकित मिला है मुगल सम्पर्क के पश्चात मेवाड़ में सिक्का एलची, चितौड़ी, भीलाडी' और उदयपुरी रुपया प्रचलन में आया था 

महाराजा स्वरूपसिंह ने स्वरूपशाही सिक्के चलाए  जिसके एक और चित्रकूट उदयपुर तथा दूसरी और दोस्तिलघना' अंकित होता था 

महाराणा स्परूपसिंह के काल में चाॅदौडी नामक स्वर्ण मुद्रा का भी चलन था शाहआलमी' प्रकार का रुपए भी चित्तौड़गढ़ में प्रचलित में था जो शाॅदी का था महाराजा भीम सिंह ने अपने बहन चंद्रकॅवर की स्मृति में चाॅदौडी रुपया,

Mewad ke sikke ka itihaas


 अठन्नी चवन्नी इत्यादि सिक्के चलाए थे मेवाड़ में चलने वाले तांबे के सिक्के ढीगाल, भिवाड़ी  त्रिशूलिया, नाथव्दारिया, भीडरिया इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुए 

मेवाड़ रियासत के सलूंबर ठिकानों की तांबे की मुद्रा को पदमशाही कहते थे शाहपुरा में चलने वाली मुद्राएं जो सोने-चांदी की होती थी उन्हें ग्यारसन्दा तथा तांबे की मुद्राओं 'माधोशाही' कहा जाता था

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