जयजंगलधर बादशाह (Jay jangaldhar badshah)
पद्मसिंह “जयजंगलधर बादशाह” के नाम से इतिहास में मशहूर बीकानेर के महाराजा करणसिंह के तीसरे पुत्र थे। उनका जन्म महाराजा करणसिंह जी की रानी स्वरूपदे हाड़ी की कोख में वि.स. 1702 वैशाख सुदि 8 (22 अप्रेल 1645) को हुआ था।
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उनकी वीरता और पराक्रम की इतिहास में कई गाथाएँ प्रसिद्ध व चर्चित है।
धर्मातपुर, समुनगर आदि के युद्धों में पद्मसिंह औरंगजेब के पक्ष में लड़े और अपनी वीरता की धाक जमाई। शहजादे शुजा के मुकाबले में जब शाही सेना खजवा का युद्ध जीतकर आई तब बादशाह औरंगजेब ने पद्मसिंह व उनके भाई केसरीसिंह का यहाँ तक सम्मान किया कि अपने रुमाल से उनके बख्तरों की धूल झाड़ी। फिर उनको बादशाह ने दक्षिण में तैनात किया जहाँ उन्होंने अपनी तलवार के जौहर दिखलाकर अपनी वीरता प्रदर्शित की।
सकेला खड़ग : - सकेला की बनी उनकी तलवार आठ पौंड वजनी तीन फूट ग्यारह इंच लम्बी और ढाई इंच चौड़ी है। उनके शास्त्राभ्यास का खांडा (खड्ग) पच्चीस पौंड वजन का चार फूट छ: इंच लम्बा और ढाई इंच चौड़ा है, जिसको आजकल का पहलवान सरलता से नहीं चला सकता।
पद्मसिंह के ये दोनों हथियार आज भी बीकानेर में सुरक्षित है। यह वह तलवार थी जिससे पदम सिंह जी ने अपने भाई के हत्यारे कोतवाल मुहम्मद मीर तोजक का एकही वार में सिर कलम कर दिया था।
उनकी तलवार चलाने की निपुणता पर यह दोहा इतिहास में प्रसिद्ध है-
कटारी अमरेस री, पदमे री तरवार ।
सेल तिहारो राजसी, सरायो संसार ।।
पद्मसिंह की वीरता पर कर्नल पाउलेट गैजेटियर ऑफ़ दि बीकानेर स्टेट के पृष्ट 42 पर लिखता है- “पद्मसिंह बीकानेर का सर्वश्रेष्ठ वीर था और जनता के हृदय में उसका वही स्थान है, जो इंग्लैण्ड की जनता के हृदय में रिचर्ड दि लायन हार्टेड (सिंह-हृदय रिचर्ड) का है।
इतिहासकार गैरीशंकर हीराचंद ओझा बीकानेर राज्य के इतिहास में लिखते है- घोड़े पर बैठकर उसे दौड़ाते हुए पद्मसिंह का एक बड़े सिंह को बल्लम से मारने का एक चित्र बीकानेर में हमारे सामने में आया।
यह चित्र प्राचीनता की दृष्टि से दो सौ वर्ष से कम नहीं है। उस (पद्मसिंह) की वीरता की गाथाएँ कपोलकल्पित नहीं कही जा सकती और नि:संकोच कहा जा सकता है कि वह बीकानेर राजवंश में बड़ा ही पराक्रमी योद्धा था| चैत्र बदि 12, वि.स. 1739 (14 मार्च 1683) को दक्षिण में तापती (तापी) के तट पर सांवतराय और जादूराय नामक मराठा वीरों व उनके आदमियों को उनके साथ हुए युद्ध में मारकर बीकानेर राजवंश का यह इतिहास प्रसिद्ध वीर इतिहास में अपनी वीरता की अमिट छाप छोड़कर परलोक सिधार गये
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