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सेटेलाइट satellite किसे कहते हैं

 

कृत्रिम उपग्रह( satellite)किसे कहते हैं

मानव निर्मित पिण्ड जो पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं कृत्रिम उपग्रह (satellite) कहलाते है। ये प्राकृतिक उपग्रह से अलग हैं। पचरंगा


आज आप जो दूरदर्शन, रेडियो, मोबाईल, आदि का उपयोग कर करते हैं, वे सभी कृत्रिम उपग्रह के कारण ही  काम करते हैं। कृत्रिम उपग्रह से पृथ्वी पर सुदृढ़ संचार व्यवस्था संभव हो पाई है। 

Satellite kise kahte hai

कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपण (Launching Artificial Satellite)

यह उपग्रह किस प्रकार अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं । तथा यह कैसे अंतरिक्ष में रहकर कार्य करते है?

 एक गेंद, पत्थर, रबर, डस्टर आदि वस्तुएँ एक-एक करके ऊपर की ओर फेंकिए। हम देखते हैं कि सभी वस्तुएँ कुछ ऊँचाई पर जाकर पुनः पृथ्वी की ओर लौट आती हैं। ये अवलोकन बताते हैं कि पृथ्वी इन वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण के कारण सभी वस्तुएँ ऊपर की ओर भेजने पर भी नीचे की ओर लौट आती है. इस प्रभाव को गुरुत्वाकर्षण कहते

क्या इस तरह से गुरुत्वाकर्षण के कारण कृत्रिम उपग्रहों को भी अंतरिक्ष की ओर भेजने पर पृथ्वी उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लेगी? तो फिर किस प्रकार कृत्रिम उपग्रहों को ऊपर की ओर भेजा जाए कि ये पुन पृथ्वी पर न लौटे?  इसे एक और गतिविधि द्वारा समझने का प्रयास करते हैं

मान लो एक गेंद को धीरे से ऊपर की ओर उछालिए तथा उसका गोर  कीजिए। देखिए यह गेंद कुछ ऊँचाई पर जाकर पुनः नीचे आती है। अब उस गेंद को और अधिक वेग से ऊपर की ओर उछालिए तथा उसके द्वारा ऊपर की ओर तय की गई दूरी का अवलोकन करें। उसे और अधिक वेग से ऊपर उछालिए तथा नोट कीजिए कि जितना अधिक वेग से गेंद को ऊपर भेजा जाता है वह अपेक्षाकृत अधिक ऊँचाई पर जाकर पृथ्वी की ओर लौटती है।


बंदूक से दागी गई गोली, आतिशबाजी का रॉकेट आदि को ऊपर की ओर छोड़ने पर इनका वेग अधिक होता है, अतः ये सभी वस्तुएँ हाथ से उछाली गई गेंद की अपेक्षा अधिक ऊँचाई पर जाकर पृथ्वी पर लौट आती है। इसी प्रकार यदि किसी उच्च कोटि के रॉकेट द्वारा यदि पिण्ड को इतना वेग प्रदान किया जाए


कि वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा को पार कर जाए तो वह पुनः पृथ्वी पर लौट कर नहीं आएगा। पृथ्वी के लिए वह न्यूनतम वेग जिससे वस्तु को ऊपर की ओर भेजने पर (प्रक्षेपित करने पर) पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को पार कर जाए पलायन वेग कहलाता है। पृथ्वी के लिए किसी वस्तु का पलायन वेग 112 किलोमीटर प्रति सेकण्ड होता है।


अतः यदि वस्तु को पलायन वेग से अधिक वेग से ऊपर की ओर भेजा जाए तो वह अंतरिक्ष में चली जाएगी। किन्तु यदि किसी पिण्ड को हम पलायन वेग यानि 112 किलोमीटर प्रति सेकण्ड से कुछ कम वेग से प्रक्षेपित करें तो वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर नहीं जाएगी वरन पृथ्वी के चारों ओर निश्चित कक्ष में चक्कर लगाने लगेगा यह कृत्रिम उपग्रह कहलाता है। कृत्रिम उपग्रह को रॉकेट अथवा उपग्रह प्रक्षेपण यान की सहायता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है।


कृत्रिम उपग्रह के प्रकार (Types of Artificial Satellite) होते हैं?

उपग्रह की अंतरिक्ष में पृथ्वी के सापेक्ष दूरी तथा उपग्रह के उपयोग के आधार पर मानव निर्मित उपग्रह के दो प्रकार होते हैं- 1. भू-स्थिर उपग्रह, 2. ध्रुवीय उपग्रह


1 भूस्थिर उपग्रह (Goo-Stationary Satellite)


हम जानते हैं कि प्रत्येक उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर निश्चित कक्ष में चक्कर लगाता है। कोई उपग्रह जो पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा लगा रहा है और पृथ्वी पर किसी निश्चित स्थान से देखने पर स्थिर दिखाई देता है मू स्थिर उपग्रह कहलाता है यह उपग्रह पृथ्वी की सतह से लगभग 36000 किलोमीटर ऊँचाई पर स्थित होता है। ये उपग्रह भूमध्य रेखीय कक्ष में चक्कर काटते हैं।

भूस्थिर उपग्रह का उपयोग सेटेलाईट, टेलीफोन, सेटेलाईट टेलीविजन, सेटेलाईट रेडियो और अन्य प्रकार के वैश्विक संचार के लिए किया जाता हैं इसलिए भूस्थिर उपग्रह को संचार उपग्रह (Communication Satellite) भी कहते हैं।

ध्रुवीय उपग्रह (polar satellite)

ऐसे उपग्रह जो पृथ्वी पर ध्रुवीय कक्षा में परिक्रमा करते हैं उसे ध्रुवीय उपग्रह कहते हैं यह उपग्रह पृथ्वी की सतह से कम ऊंचाई पर चक्कर काटते हैं । पृथ्वी की सतह से लगभग 500 से 800 किलोमीटर होती है।

कृत्रिम उपग्रह के उपयोग (Uses of Artificial Satellite) 

कृत्रिम उपग्रह हमारे लिए बहुत उपयोगी है। इनकी सहायता से हमें कई क्षेत्रों में सुविधाएँ व सूचना प्राप्त होती है।


1 दूरसचार के साधन जैसे-टेलीफोन, मोबाइल, टेलीविजन, इंटरनेट आदि में यह पृथ्वी के किसी स्थान पर स्थित उपकरणों से तरंगे प्राप्त करता है और इन्हें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर भेजता है।

2 इसकी सहायता से मौसम एवं भूगर्भ संबंधी सूचनाएं एका चारक उनके बारे में विभिन्न जानकारी प्राप्त होती है। 

3 फसल के क्षेत्रफल एवं उत्पादन का आकलन करना।


4 सूखा एवं बाढ़ की चेतावनी देना और उनसे होने वाली हानि ज्ञात करना।


5 भूमिगत पानी की खोज करके जल संसाधन का प्रबन्धन करना। 

6भूगर्भ में स्थित खनिज संसाधन का पता लगाना।


7वनों का सर्वेक्षण करके पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में सहायता करना। 

 8 हवाई अड्डो, बंदरगाहों तथा सैनिक ठिकानों की निगरानी रखना जिससे उनकी सुरक्षा के प्रबन्ध में आसानी हो।


9. सैनिक गतिविधियों की जासूसी करना।

10. अंतरिक्ष एवं वायुमण्डल में होने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना। 

11. वायुयान, जहाज, व्यक्ति अथवा वस्तु के सही स्थान का पता लगाना।

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