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प्राचीन भारत में नारी की दशा

प्राचीन भारत में नारी की दशा

नमस्कार दोस्तों आज हम प्राचीन भारत में नारी की दशा के बारे में जानने कि कल्पना करेंगे। ये भी पढ़ें मेवाड़ का इतिहास

मानव जीवन में नारी जाति को ही समाज ने सर्वापरि स्थान दिया है। वस्तुत: नारी ही समाज और संस्कृति की एक सबसे निर्मात्री एवं संरक्षिका होती हैं। प्राचीन युग में नारियों को समाज में सबसे अधिक गौरव दिया जाता था। बड़े बड़े राजाओं के अश्वमेध यज्ञ में यदि उनकी पत्नी सम्मिलित न होती थी तो यज्ञ अधूरे ही रहते थे। ये भी पढ़ें हांडी रानी का इतिहास

ऋग्वेद युग में नारियां अपने पतियों के साथ बड़े बड़े समारोहों में सम्मिलित होती थी । उस समय सदाचार और पवित्रता का वातावरण पाया जाता था । और भ्रष्टाचार का नाम तक न था । परन्तु कालान्तर में नारीयों की दशा में क्रमश: गिरावट आती गई । नारीयों के दशा के सम्बन्ध में विवेचन निम्नलिखित पिछले शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है ।

किसी भी समाज के विकास स्तर को समझने के लिए उसमें नारी की स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । उसका पुत्री, पत्नी और माता के रूप में महत्व है । पत्नी के रूप में वह परिवार का संचालन करती है माता के रूप में वह सृष्टा है। प्रस्तुत ब्लॉग "marudhar1.blogspot.com" में विभिन्न कालों में महिलाओं की स्थिति व उनकी भूमिका के अध्ययन का भारतीय नारी के ऐतिहासिक सर्वेक्षण का विनम्र प्रयास करेंगे 

जैसे कि । एक में वैदिक काल में नारी की सम्मानजनक स्थिति का वर्णन , परिवार में पत्नी की प्रतिष्ठा क्या थी । सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में उसकी स्थिति पति के समकक्ष कैसी थी । पत्नी के बिना मनुष्य अपूर्व था । गौतम बुद्ध के काल में समाज में स्त्रियों की स्थिति सराहनीय नहीं थी बुद्ध स्त्रियां की संघ में प्रवेश देने के विरुध्द थे। छठी सदी के बाद समाज में स्त्रियों की स्थिति पतन की ओर जाने लगी थी 

आगे हम पर्व वैदिक काल में नारी के दशा का वर्णन करेंगे 

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