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The hidden secrets of the three parts of women

These three parts of women's body reveal their hidden secrets Lifestyle News: It is said that even God could not understand women till date, but do you know that there is no need to apply much mind to understand women and know about them.  There are three such parts of his body, which reveal all his hidden secrets. On the other hand, if you also want to know or understand something about your female friend, then pay attention to these three body parts of her. Read more articles: history of science and technology in india dimple on chin Women who have dimples on their chin are very happy and loyal in nature. These women are also kind to others. On the other hand, women whose chin is round are said to be very fortunate.  Apart from this, women with long chin are quickly attracted towards worldly pleasures, hence they are counted among characterless women. eyebrows Women whose eyebrows are arranged like a bow shape, those women are called beautiful and characterful. On the other hand,

गीता बेन रबारी Geeta rabari

गीता बेन रबारी geeta Ben rabari गीता बेन रबारी geeta rabari एक प्रसिद्ध गुजराती संगीतकार हैं। उनका जन्म 20 अक्टूबर, 1973 को गुजरात के एक छोटे गांव में हुआ था। गीता बेन रबारी गुजराती गीतों की प्रसिद्ध और प्रतिभाशाली स्वरलिपि हैं और उन्होंने गुजराती संगीत उद्योग में बहुत अच्छा नाम कमाया है। उड़ना राजकुमार कोन था   उन्होंने अपनी पहचान गुजराती संगीत रियाज और ग्रामीण गीतों के माध्यम से बनाई है। उनकी प्रसिद्ध गायिका के रूप में मशहूरी मिली जब उन्होंने टेलीविजन शो "જીવન-ની-એ-રીત" में भाग लिया, जहां उन्होंने अपने उद्दीपक और लोकप्रिय गायन स्टाइल को प्रदर्शित किया। गीता बेन रबारी के कई प्रसिद्ध गीत हैं, जिनमें से कुछ हैं "રांધે રાંધે જોગાતો", "રોંગટાળા", "જીંદગી કે પટ માં મોજ" और "રોકડુંદો". उन्होंने अपनी अनोखी आवाज और गायन स्टाइल के कारण गुजराती संगीत उद्योग में बड़ा कदम रखा है और उन्हें गुजराती संगीत की दुनिया में एक अलग पहचान मिली है। गीता बेन रबारी के संगीत सर्कल में उन्हें "गुजરાતી रॉकस्टार" भी कहा जाता है। उनके संगीत के कई स

constantinople history in hindi कंस्टेंटिनोपल का इतिहास

constantinople history in Hindi कंस्टेंटिनोपल का इतिहास  1453 में कंस्टेंटिनोपल का इतिहास विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह वर्ष में इस्लामी सेना, जिस के प्रमुख नेता सुल्तान महमूद शाह थे, द्वारा बायज़ीद किले की घेराबंदी के बाद कंस्टेंटिनोपल को जीता गया। कंस्टेंटिनोपल, जिसे अब आधिकारिक रूप से इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है, बिजंटाइन साम्राज्य की राजधानी थी। यह शहर प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। कंस्टेंटिनोपल ने इतिहास में बहुत सारे महत्वपूर्ण घटनाओं की साक्षी बनी है और यहां कई मशहूर और महत्वपूर्ण स्मारक स्थल स्थित हैं। The empire history in Hindi   1453 ईस्वी में, तुर्क सल्तानत द्वारा कंस्टेंटिनोपल पर की जा रही आक्रमण ने अंतिम बिजंटाइन साम्राज्य का अंत किया।  इस समय कंस्टेंटिनोपल किले में मेहराबानी और आवासीय बस्तियों में कुशासन था, जिसने उसे अत्यंत मजबूत बनाया था। बायज़ीद किले को एक महीने तक घेराबंद करने के बाद, तुर्क सेना द्वारा निरंतर आक्रमण और कंस्टेंटिनोपल में विपक्ष की कमजोरी ने शहर को बिना किसी युद्ध के जीत लिया। कंस्टेंटिनोपल की जीत से मुस्लिम सल्तानतों

History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में

History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में    History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में स्तूप का अपना इतिहास है। कुछ इतिहास स्तूप बताते हैं कि वे कैसे बने साथ-साथ इनकी खोज का भी इतिहास है।   Click here> boraj ka yudtha अब हम इनकी खोज के इतिहास पर एक नज़र डालें। 1796 में स्थानीय राजा को जो मंदिर बनाना चाहते थे, अचानक अमरावती के के अवशेष मिल गए। उन्होंने उसके पत्थरों के इस्तेमाल करने का निश्चय किया।  उन्हें ऐसा लगा कि इस छोटी सी पहाड़ी में संभवतः कोई खजाना छुपा हो। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज़ अधिकारी इस इलाके से गुजरे  हालांकि उन्होंने कई मूर्तियाँ पाई और उनका विस्तृत चित्रांकन भी किया, लेकिन उनकी रिपोर्ट कभी छपी नहीं। 1854 में गुंटूर (आंध्र प्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की।  उन्होंने कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर जमा किए और वे उन्हें मद्रास ले गए। (इन्हें उनके नाम पर एलियट संगमरमर के नाम से जाना जाता है)।  उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी निकाला और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप थ

Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो

Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो नोट :( नमस्कार मैं marudhar1.blogspot.com में आपका स्वागत है आज हम देश भक्ति के बारे में स्टोरी पढ़ेंगे ''Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो" ) लहराती हरियाली हो. महकाता मधुरेश हो।  नई जिन्दगी झूमे जिसमें ऐसा मेरा देश हो।।  हर घर में हो नया तराना हर घर में हो गीत नया।  मेहनत की ममता में डूबा, जागे फिर संगीत नया।  नए रंग हों, नव उमंग हो, नई बात हो, नए ढंग हो।  नव विकास की नई किरण में, तम का कहीं न लेश हो।। ऐसा मेरा देश हो।(Aisa Mera desh ho) पर्वत को भी तोड़ चले जो टकराए तूफान से। कोटि चरण प्रस्थान करें, नव पौरुष से अभिमान से।। गगन गहरता गूँजे गान, जागे सारा हिंदुस्तान। डगर-डगर से नगर-नगर से, निविड तमिश्रा शेष हो ।। ऐसा मेरा देश हो। मिट्टी का मोती मुस्काए खेतों में खलिहानों में।  अपनेपन का दीप नया फिर, जागे नए किसानों में ।।   अपनी धरती हो निर्धन की पूरी हो आशा जन-जन की। कोई रहे न भूखा नंगा, ना कोई दरवेश हो।। ऐसा मेरा देश हो। कमेंट में हमें लिख कर बताया कि कैसी लगी हमारी स्टोरी और कमेंट में जय हिन्द लिखना ना भूलें यह भी अवश्य पढ़ें _____

jhansi ki rani biography in hindi

नमस्ते दोस्तों आज हम साहसी व बहादुर वीरांगना के बारे में जानने का प्रयास करेंगे jhansi ki rani biography in hindi , ये भी पढ़ें रानी दुर्गावती का इतिहास अठारहवीं सदी में भारत में अंग्रेजी राज्य का काफी विस्तार हो चुका था। एक-एक देशी राजाओं ने या तो उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी या उनसे पराजित होकर उनके द्वारा दी गई वार्षिक पेंशन के रूप में दया की भीख पाकर गुजारा कर रहे थे। उस समय इसी तरह एक रियासतदार बनारस में था चिमणा अप्पा चिमणा अप्पा का एक वफादार मुसाहिब था-मोरोपन्त तांबे । 19 नवम्बर, 1835 ई. को मोरोपन्त ताम्बे की पत्नी भागीरथी बाई ने एक सुन्दरसी कन्या को जन्म दिया। कन्या का नाम रखा गया - मनुबाई manubai । लक्ष्मीबाई , ( laxmibai ) उनकी ससुराल का नाम था। ताम्बेजी एक साधारण ब्राह्मण थे। वे तत्कालीन पेशवा के भाई, चिमाजी के यहाँ 50 रुपये मासिक पर नौकरी करते थे। मनु बाई जब तीन वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहान्त हो गया तथा उसी समय चिमाजी का भी देहावसान हो गया। इसलिए तांबेजी काशी छोड़कर ब्रह्मावर्त में बाजीराव पेशवा के यहां जाकर रहने लगे। बाजीराव के दत्तक पुत्र नानासाहब और राव साहब क

Utarvaidik kal main female ki dasha

 Utarvaidik kal main female ki dasha kiya thi, उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों की दशा किया थीं। इस पोस्ट में आज हम जानेंगे। • उत्तरवैदिक कालीन साहित्यिक कृतियों का अध्ययन करने से यही ज्ञात होता है कि इस समय से भारतीय नारी की दशा पतनोमुखी होने लगी थी। इसके उस समय में कई प्रत्यक्ष कारण पाये जाते हैं एक इस युग में जीवन की मान्यताओं और परिभाषाओं में यथेष्ठ अन्तर आ गया था। ये अवश्य पढ़ें वीरधर्म किया है  एक ओर मानव जीवन के आनन्दों की कल्पना की जाने लगी थी तो दूसरी ओर तप अर्थात् तपश्चर्या पर भी अधिकाधिक बल दिया जाने लगा। अतएव तपश्चर्या के महत्त्व पर अधिकतम ध्यान देने वाले उत्तरवैदिक कालीन आर्यों का स्त्रियों को उपेक्षित करना स्वाभाविक था। इसके अतिरिक्त वैदिक काल से निम्न वर्ण की कन्या लेने की प्रथा भी अब काफी दूषित हो चुकी थी। पहले निम्न वर्ण के कन्या लेने वाले व्यक्ति उसकी सौम्यता एवं योग्यता का समुचित रूप से ध्यान रखते थे और बहुधा वह कन्यायें भी विदुषी और गुणवती हुआ करती थी परन्तु इसके विपरीत उत्तरकालीन आर्यों की स्त्रियों में शिक्षा का अभाव था और वे अधिकतर अशिक्षित ही रह जाती थीं। यदि