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constantinople history in hindi कंस्टेंटिनोपल का इतिहास

constantinople history in Hindi कंस्टेंटिनोपल का इतिहास  1453 में कंस्टेंटिनोपल का इतिहास विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह वर्ष में इस्लामी सेना, जिस के प्रमुख नेता सुल्तान महमूद शाह थे, द्वारा बायज़ीद किले की घेराबंदी के बाद कंस्टेंटिनोपल को जीता गया। कंस्टेंटिनोपल, जिसे अब आधिकारिक रूप से इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है, बिजंटाइन साम्राज्य की राजधानी थी। यह शहर प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। कंस्टेंटिनोपल ने इतिहास में बहुत सारे महत्वपूर्ण घटनाओं की साक्षी बनी है और यहां कई मशहूर और महत्वपूर्ण स्मारक स्थल स्थित हैं। The empire history in Hindi   1453 ईस्वी में, तुर्क सल्तानत द्वारा कंस्टेंटिनोपल पर की जा रही आक्रमण ने अंतिम बिजंटाइन साम्राज्य का अंत किया।  इस समय कंस्टेंटिनोपल किले में मेहराबानी और आवासीय बस्तियों में कुशासन था, जिसने उसे अत्यंत मजबूत बनाया था। बायज़ीद किले को एक महीने तक घेराबंद करने के बाद, तुर्क सेना द्वारा निरंतर आक्रमण और कंस्टेंटिनोपल में विपक्ष की कमजोरी ने शहर को बिना किसी युद्ध के जीत लिया। कंस्टेंटिनोपल की जीत से मुस्लिम सल्तानतों

History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में

History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में    History of stupa in Hindi - स्तूप का इतिहास हिंदी में स्तूप का अपना इतिहास है। कुछ इतिहास स्तूप बताते हैं कि वे कैसे बने साथ-साथ इनकी खोज का भी इतिहास है।   Click here> boraj ka yudtha अब हम इनकी खोज के इतिहास पर एक नज़र डालें। 1796 में स्थानीय राजा को जो मंदिर बनाना चाहते थे, अचानक अमरावती के के अवशेष मिल गए। उन्होंने उसके पत्थरों के इस्तेमाल करने का निश्चय किया।  उन्हें ऐसा लगा कि इस छोटी सी पहाड़ी में संभवतः कोई खजाना छुपा हो। कुछ वर्षों के बाद कॉलिन मेकेंजी नामक एक अंग्रेज़ अधिकारी इस इलाके से गुजरे  हालांकि उन्होंने कई मूर्तियाँ पाई और उनका विस्तृत चित्रांकन भी किया, लेकिन उनकी रिपोर्ट कभी छपी नहीं। 1854 में गुंटूर (आंध्र प्रदेश) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की।  उन्होंने कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर जमा किए और वे उन्हें मद्रास ले गए। (इन्हें उनके नाम पर एलियट संगमरमर के नाम से जाना जाता है)।  उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार को भी निकाला और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप थ

Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो

Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो नोट :( नमस्कार मैं marudhar1.blogspot.com में आपका स्वागत है आज हम देश भक्ति के बारे में स्टोरी पढ़ेंगे ''Aisa Mera desh ho - ऐसा मेरा देश हो" ) लहराती हरियाली हो. महकाता मधुरेश हो।  नई जिन्दगी झूमे जिसमें ऐसा मेरा देश हो।।  हर घर में हो नया तराना हर घर में हो गीत नया।  मेहनत की ममता में डूबा, जागे फिर संगीत नया।  नए रंग हों, नव उमंग हो, नई बात हो, नए ढंग हो।  नव विकास की नई किरण में, तम का कहीं न लेश हो।। ऐसा मेरा देश हो।(Aisa Mera desh ho) पर्वत को भी तोड़ चले जो टकराए तूफान से। कोटि चरण प्रस्थान करें, नव पौरुष से अभिमान से।। गगन गहरता गूँजे गान, जागे सारा हिंदुस्तान। डगर-डगर से नगर-नगर से, निविड तमिश्रा शेष हो ।। ऐसा मेरा देश हो। मिट्टी का मोती मुस्काए खेतों में खलिहानों में।  अपनेपन का दीप नया फिर, जागे नए किसानों में ।।   अपनी धरती हो निर्धन की पूरी हो आशा जन-जन की। कोई रहे न भूखा नंगा, ना कोई दरवेश हो।। ऐसा मेरा देश हो। कमेंट में हमें लिख कर बताया कि कैसी लगी हमारी स्टोरी और कमेंट में जय हिन्द लिखना ना भूलें यह भी अवश्य पढ़ें _____

jhansi ki rani biography in hindi

नमस्ते दोस्तों आज हम साहसी व बहादुर वीरांगना के बारे में जानने का प्रयास करेंगे jhansi ki rani biography in hindi , ये भी पढ़ें रानी दुर्गावती का इतिहास अठारहवीं सदी में भारत में अंग्रेजी राज्य का काफी विस्तार हो चुका था। एक-एक देशी राजाओं ने या तो उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी या उनसे पराजित होकर उनके द्वारा दी गई वार्षिक पेंशन के रूप में दया की भीख पाकर गुजारा कर रहे थे। उस समय इसी तरह एक रियासतदार बनारस में था चिमणा अप्पा चिमणा अप्पा का एक वफादार मुसाहिब था-मोरोपन्त तांबे । 19 नवम्बर, 1835 ई. को मोरोपन्त ताम्बे की पत्नी भागीरथी बाई ने एक सुन्दरसी कन्या को जन्म दिया। कन्या का नाम रखा गया - मनुबाई manubai । लक्ष्मीबाई , ( laxmibai ) उनकी ससुराल का नाम था। ताम्बेजी एक साधारण ब्राह्मण थे। वे तत्कालीन पेशवा के भाई, चिमाजी के यहाँ 50 रुपये मासिक पर नौकरी करते थे। मनु बाई जब तीन वर्ष की थी, तभी उनकी माता का देहान्त हो गया तथा उसी समय चिमाजी का भी देहावसान हो गया। इसलिए तांबेजी काशी छोड़कर ब्रह्मावर्त में बाजीराव पेशवा के यहां जाकर रहने लगे। बाजीराव के दत्तक पुत्र नानासाहब और राव साहब क

Utarvaidik kal main female ki dasha

 Utarvaidik kal main female ki dasha kiya thi, उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों की दशा किया थीं। इस पोस्ट में आज हम जानेंगे। • उत्तरवैदिक कालीन साहित्यिक कृतियों का अध्ययन करने से यही ज्ञात होता है कि इस समय से भारतीय नारी की दशा पतनोमुखी होने लगी थी। इसके उस समय में कई प्रत्यक्ष कारण पाये जाते हैं एक इस युग में जीवन की मान्यताओं और परिभाषाओं में यथेष्ठ अन्तर आ गया था। ये अवश्य पढ़ें वीरधर्म किया है  एक ओर मानव जीवन के आनन्दों की कल्पना की जाने लगी थी तो दूसरी ओर तप अर्थात् तपश्चर्या पर भी अधिकाधिक बल दिया जाने लगा। अतएव तपश्चर्या के महत्त्व पर अधिकतम ध्यान देने वाले उत्तरवैदिक कालीन आर्यों का स्त्रियों को उपेक्षित करना स्वाभाविक था। इसके अतिरिक्त वैदिक काल से निम्न वर्ण की कन्या लेने की प्रथा भी अब काफी दूषित हो चुकी थी। पहले निम्न वर्ण के कन्या लेने वाले व्यक्ति उसकी सौम्यता एवं योग्यता का समुचित रूप से ध्यान रखते थे और बहुधा वह कन्यायें भी विदुषी और गुणवती हुआ करती थी परन्तु इसके विपरीत उत्तरकालीन आर्यों की स्त्रियों में शिक्षा का अभाव था और वे अधिकतर अशिक्षित ही रह जाती थीं। यदि

पूर्व वैदिक काल में नारी की दशा किया थी

पूर्व वैदिक काल में नारी की दशा किया थी। नमस्कार दोस्तों आज हम `पूर्व वैदिक काल में नारी की दशा, के बारे में जानने का प्रयास करेंगे पूर्व वैदिक काल में महिलाओं की क्या क्या भुमिका रहीं हैं ये अवश्य पढ़ें राजमाता जीजा बाई 1 पारिवारिक जीवन  2 पत्नी के रूप में नारी का महत्व  3 सती प्रथा का प्रचलन नहीं था  4 दहेज प्रथा का प्रचलन 1, पारिवारिक जीवन - इस युग में आर्य कुटुम्ब पितृसत्तात्मक होते हुए भी नारी सम्मान से युक्त । आर्य परिवार में पिता और पितामह ही कुटुम्ब का प्रधान होता था । जिसे गृहपति कहा जाता था । गृहपति तथा उसकी पत्नी को जिसे गृह के सभी कार्यों के लिए उतरदायी रहना होता था । कुटुम्ब के सभी लोगों के ऊपर सामान्यत: नियन्त्रण रखने का अधिकार रहता था पिता की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र ही गृहपती बनता था वहीं अपने पिता की संपत्ति का उचित उतराधिकारी माना जाता था । पुत्री नहीं। पुत्री को वह सम्पत्ति तभी प्राप्त होती थी जबकि वह अपने पिता की एकमात्र सन्तान हो । पिता की मृत्यु के पश्चात भ्राता का कर्तव्य अपनी बहिन के प्रति विशेष रूप से बढ़ जाता था । 2, पत्नी के रूप में नारी का महत्व - कहा

प्राचीन भारत में नारी की दशा

प्राचीन भारत में नारी की दशा नमस्कार दोस्तों आज हम प्राचीन भारत में नारी की दशा के बारे में जानने कि कल्पना करेंगे। ये भी पढ़ें मेवाड़ का इतिहास मानव जीवन में नारी जाति को ही समाज ने सर्वापरि स्थान दिया है। वस्तुत: नारी ही समाज और संस्कृति की एक सबसे निर्मात्री एवं संरक्षिका होती हैं। प्राचीन युग में नारियों को समाज में सबसे अधिक गौरव दिया जाता था। बड़े बड़े राजाओं के अश्वमेध यज्ञ में यदि उनकी पत्नी सम्मिलित न होती थी तो यज्ञ अधूरे ही रहते थे। ये भी पढ़ें हांडी रानी का इतिहास ऋग्वेद युग में नारियां अपने पतियों के साथ बड़े बड़े समारोहों में सम्मिलित होती थी । उस समय सदाचार और पवित्रता का वातावरण पाया जाता था । और भ्रष्टाचार का नाम तक न था । परन्तु कालान्तर में नारीयों की दशा में क्रमश: गिरावट आती गई । नारीयों के दशा के सम्बन्ध में विवेचन निम्नलिखित पिछले शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है । किसी भी समाज के विकास स्तर को समझने के लिए उसमें नारी की स्थिति का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । उसका पुत्री, पत्नी और माता के रूप में महत्व है । पत्नी के रूप में वह परिवार का संचालन कर