Devnarayan bhagwan ki katha-देवनारायण भगवान की कथा
नमस्कार दोस्तों आपका हमारे बेबसाइट" इतिहास हिन्दी में आपका स्वागत है आज हम देवनारायण भगवान की कथा या उनके जीवन लीला के बारे में जानेंगे इतिहास के पन्नों में देवनारायण भगवान का नाम सबसे पहले आता है जिसे भगवान देवनारायण को भगवान विष्णुदेव का अवतार भी कहा जाता है।
चौहान वंश बगड़ावत गुर्जरों की वंशावली
देवनारायण भगवान का इतिहास जानें कि भगवान देवनारायण की उत्पत्ति कहां से हुई ऐतिहासिक रूप से वर्तमान भारतवर्ष के मध्ययुगीन गुर्जर देश की भूमि पर शाक भरी के चौहान कुल में उत्पन्न बाघरावत के 24 पुत्रों हुए जिसमें सवाई भोज बगडावत बड़े थे सवाई भोज के 24 भाई को बगड़ावत कहा जाता है उनके पिताजी बाघजी रावत के नाम से बगड़ावत नाम पड़ा था
ये पोस्ट पढ़ें>> पाबुजी राठौड़ का इतिहास
ये पोस्ट पढ़ें >> बोराज का युद्ध के बारे मैं
सवाई भोज को भगवान शिवशंकर द्वारा बारह वर्ष की काया माया के वरदान की प्राप्ति थी। बगड़ावतों के दानवीरता और शौर्यगाथा व बगड़ावतों की भक्ति और शक्तिरूप की चतुर्भुज भगवान नारायण द्वारा छळपूर्वक परीक्षा कि गई थी
बगड़ावत बाघरावत पुत्र सवाई भोज का विवाह हुआ
बाघरावत के बड़े पुत्र सवाई भेाज का विवाह साढू देवी के साथ हुआ था सवाई भोज की पत्नी साढूजी को भगवान विष्णुदेव ने बगड़ावत कुल में पुत्र रूप स्वयं अवतरित होने का वचन दिया था
बगड़ावतों का इतिहास युद्ध हुआ
राजस्थान का यह युद्ध बहुत ही भयानक हुआ था यह युद्ध बगड़ावतों के बीच व भिणाय के राज्य का राजा राणा के सेनाओं के मध्य हुआ था उस युद्ध का नाम ऐतिहासिक बगड़ावत भारत युद्ध था इस युद्ध का मुख्य कारण जैमती थी
बगड़ावतों को छळने के लिए आदिशक्ति महाकाली का गुर्जर देशीय धरा धाम पर जैमती रूप अवतरण जैमती द्वारा विवाह के लिए बगड़ावत सवाईभोज का वरण करना जैमती को लेकर प्रतीकात्मक रूप से गुर्जर वंशों के मध्य पारस्परिक बगड़ावत भारत युद्ध होना। युद्ध भूमि में 24 बगड़ावतों के मुण्डों की माला धारण करके भगवान नारायण को आदिशक्ति महाकाली रूप जैमती द्वारा भेंट करना,
ये पोस्ट पढ़ें>>हांडी रानी के इतिहास के बारे में जाने
भगवान श्री देवनारायण का जन्म मालासेरी डूंगरी गांव में हुआ था भगवान देवनारायण का कमल पुष्प अवतारी रूप प्राकट्य हुआ था उसके पश्चात् राजा भिणाय के राणा का हद से ज्यादा अत्याचार के कारण साढू माता जी अपने पिहर मालवा चलीं जाती हैं
भगवान देवनारायण ने अपने ननिहाल मालवा में बाल लीलाएं दिखाते , उसके बाद भगवान देवनारायण बड़े होते हैं एक दिन कुलभाट छोछू द्वारा पूर्वज बगड़ावतों की स्मृति करवाये जाने पर भगवान देवनारायण अपने देश में जाने कि हट करते हैं और अपने गाय व साढू माताजी गडगोठां नगरी वापस लौटने पर अपने बन्धुओं प्रतीकात्मक रूप से गुर्जर वंशों को पुर्नसंगठित करके पूर्वजों के वैभव को पुर्नस्थापित करने एवं पूर्वजों के बैर को निर्बर अर्थात् निरतिशय प्रेम को
ये पोस्ट पढ़ें>> महाराणा सांग्राम सिंह जी की लड़ाई अब हुए
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें